प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक

प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक

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प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक –  प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक पढ़कर आप इस महान भाषा से जीवनभर प्रेरित हो सकते हैं, जिसके लिए आपको इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ना पड़ेगा। यह संस्कृत श्लोक आपको जीने का एक मकसद देंगे साथ ही आपको प्रेरणा से भर देंगे।

संस्कृत श्लोकों (Slokas in Sanskrit) का महत्व इतिहास से जुड़ा हुआ है, और यही वजह है कि आज भी ये श्लोक हमारे जीवन में उपयोगी हैं। प्रत्येक संस्कृत श्लोक में मनुष्य के जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांत और उससे मिलने वाले लाभ और जीवन के नीतियों का वर्णन किया गया है।

ऋषि-मुनियों ने संस्कृत भाषा में कई बातें श्लोकों के माध्यम से जीवन से जुड़ी अमूल्य बातें व्यक्त की हैं जो सम्पूर्ण मानव जाति के लिए उपयोगी है।

संस्कृत श्लोक

जीविताशा बलवती धनाशा दुर्बला मम्।।

भावार्थ : मेरी जीवन की आशा बलवती है पर धन की आशा दुर्लभ है।


जीवितं क्षणविनाशिशाश्वतं किमपि नात्र।

भावार्थ : यह क्षणभुंगर जीवन में कुछ भी शाश्वत नहीं है।


कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति।
उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम्।।

भावार्थ : जिस प्रकार लोग नदी पार करने के बाद नाव को भूल जाते हैं, उसी तरह लोग अपना काम पूरा होने तक दूसरों की प्रशंसा करते हैं और काम पूरा होने के बाद दूसरे को भूल जाते हैं।


नारुंतुदः स्यादार्तोSपि न परद्रोहकर्मधीः।
ययास्योद्विजते वाचा नालोक्यां तामुदीरयेत्॥

भावार्थ : मनुष्य का कर्तव्य है कि यथा सम्भव किसी को पीडा दे कर उसका हृदय न दुखाये, भले ही स्वयं दुःख उठा ले। किसी के प्रति अकारण द्वेष-भाव न रखे और कोई कटु बात कह कर किसी का मन उद्विग्न न करे।


न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति।
हविषा कृष्णवर्त्मेन भूय एवाभिवर्धते॥

भावार्थ : भोग करने से कभी भी कामवासना शान्त नहीं होती है, परन्तु जिस प्रकार हवनकुण्ड में जलती हुई अग्नि में घी आदि की आहुति देने से अग्नि और भी प्रज्ज्वलित हो जाती है वैसे ही कामवासना भी और अधिक भडक उठती है।


येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति॥

भावार्थ : जिनमें न ज्ञान है, न तप है, न दान है, न विद्या है, न गुण है, न धर्म है। वे नश्वर संसार में पृथ्वी के बोझ हैं और मानव रूप में हिरण (पशु ) की तरह घूमते हैं।


कण्टकावरणं यादृक्फलितस्य फलाप्तये।
तादृक्दुर्जनसङ्गोSपि  साधुसङ्गाय बाधनं॥

भावार्थ : जिस प्रकार एक फलदायी वृक्ष के कांटे उसके फलों को प्राप्त करणे में बाधा उत्पन्न करते हैं, वैसे ही दुष्ट व्यक्तियों की सङ्गति (मित्रता) भी साधु और सज्जन व्यक्तियों की सङ्गति में बाधा उत्पन्न करती है।


कण्ठे मदः कोद्रवजः हृदि ताम्बूलजो  मदः।
लक्ष्मी मदस्तु सर्वाङ्गे पुत्रदारा मुखेष्वपि॥

भावार्थ : मदिरा (शराब्) पीने से उसका दुष्प्रभाव कण्ठ पर ( बोलने की क्षमता ) पर पडता है और तंबाकू (पान) खाने से उसका मन पर प्रभाव पड़ता है। परन्तु संपत्तिवान होने का मद (नशा या गर्व) व्यक्तियों न केवल उनके संपूर्ण शरीर पर वरन उनकी स्त्रियों और संतान के मुखों (चेहरों) पर भी देखा जा सकता है।


ऐश्वर्ये  वा सुविस्तीर्णे  व्यसने  वा सुदारुणे।
रज्जवेव पुरुषं बद्ध्वा कृतान्तः परिकर्षति॥

भावार्थ : अत्यधिक ऐश्वर्यवान तथा बुरे व्यसनों मे लिप्त व्यक्ति रस्सियों से बंधे हुए व्यक्ति के समान होते हैं और अन्ततः उनका भाग्य उनको  प्रताडित कर अत्यन्त कष्ट देता है।


संतोषवत् न किमपि सुखम् अस्ति॥

भावार्थ : संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है।

 

संस्कृत श्लोक -सुबह की शुभकामनायें

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