पर्युषण पर्व: क्या है, क्यों किए जाते हैं, और क्या है धार्मिक महत्व?

पर्युषण पर्व

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पर्युषण पर्व जैन धर्म का एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे आत्मशुद्धि, आत्मसंयम, और आत्मनिरीक्षण का अवसर माना जाता है। यह पर्व जैन धर्म के दोनों प्रमुख संप्रदायों श्वेतांबर और दिगंबरद्वारा मनाया जाता है, और इसका उद्देश्य आत्मा की शुद्धि, पापों का प्रायश्चित, और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होना है। इस पर्व का धार्मिक महत्व इतना अधिक है कि इसे जैन धर्म के ‘मूलधर्म’ के रूप में स्वीकारा गया है।

पर्युषण पर्व का धार्मिक महत्व

जैन धर्म के अनुसार, आत्मा के शुद्धिकरण और मोक्ष प्राप्ति के लिए पर्युषण पर्व का पालन अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पर्व आत्मा के उन बंधनों को तोड़ने का अवसर प्रदान करता है, जो संसार के मोह-माया, कर्म बंधनों और अन्य सांसारिक आकर्षणों से उत्पन्न होते हैं।

जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, प्रत्येक जीवात्मा में अनंत शक्तियाँ और ज्ञान निहित हैं, लेकिन ये शक्तियाँ और ज्ञान कर्मों के बंधनों से ढके हुए होते हैं। पर्युषण पर्व के दौरान किए गए उपवास, तपस्या, और आत्मसंयम के माध्यम से इन बंधनों को काटने और आत्मा को शुद्ध करने का प्रयास किया जाता है। इस पर्व के दौरान जैन अनुयायी ‘क्षमावाणी’ का पालन करते हैं, जो क्षमा मांगने और क्षमा करने का अभ्यास है। यह क्षमा केवल दूसरों के प्रति ही नहीं, बल्कि स्वयं के प्रति भी होती है, जिससे आत्मा की शुद्धि होती है।

धार्मिक क्रियाकलाप और अनुष्ठान

पर्युषण पर्व

पर्युषण पर्व के दौरान विभिन्न धार्मिक क्रियाकलाप और अनुष्ठान किए जाते हैं, जो इस पर्व को और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख धार्मिक क्रियाएँ निम्नलिखित हैं:

  1. उपवास: जैन धर्म में उपवास को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। पर्युषण पर्व के दौरान अनुयायी बिना अन्न और जल के उपवास करते हैं। इसे ‘निर्जल उपवास’ कहा जाता है, जिसमें केवल उबला हुआ पानी (और वह भी दिन के एक निश्चित समय में) ग्रहण किया जाता है। उपवास के माध्यम से शरीर और आत्मा की शुद्धि की जाती है, जिससे कर्म बंधनों का नाश होता है।
  2. स्वाध्याय: इस पर्व के दौरान जैन अनुयायी धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। यह स्वाध्याय आत्मा के शुद्धिकरण और ज्ञान की प्राप्ति का मार्ग है। ग्रंथों का पाठ करने से व्यक्ति के भीतर धार्मिक भावनाएँ जागृत होती हैं और उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
  3. प्रतिक्रमण: प्रतिक्रमण जैन धर्म की एक महत्वपूर्ण साधना है, जिसमें व्यक्ति अपने पिछले कर्मों की समीक्षा करता है, उन्हें सुधारने का प्रयास करता है, और भविष्य में उन्हें न दोहराने का संकल्प लेता है। यह साधना आत्मशुद्धि और आत्मसंयम का प्रतीक है, जो पर्युषण पर्व का मूल उद्देश्य है।
  4. प्रवचन और उपदेश: इस पर्व के दौरान जैन मंदिरों में धार्मिक प्रवचन और उपदेश का आयोजन किया जाता है। इन प्रवचनों में जैन साधु-साध्वियाँ धार्मिक शिक्षाओं और सिद्धांतों का विस्तार से वर्णन करते हैं, जिससे अनुयायियों को धर्म के प्रति अपनी श्रद्धा और विश्वास को मजबूत करने में मदद मिलती है।
  5. क्षमावाणी: पर्युषण पर्व के अंत में क्षमावाणी का आयोजन किया जाता है। इस दिन जैन अनुयायी अपने परिवार, मित्रों, और समाज के अन्य लोगों से क्षमा मांगते हैं और उन्हें क्षमा करते हैं। यह क्षमा केवल बाहरी ही नहीं, बल्कि आंतरिक भी होती है, जिससे व्यक्ति अपने मन में व्याप्त सभी दोषों और नकारात्मक भावनाओं से मुक्त हो जाता है।

धार्मिक दृष्टिकोण से पर्युषण पर्व का महत्व

पर्युषण पर्व का धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व है। यह पर्व आत्मा की शुद्धि का अवसर प्रदान करता है और व्यक्ति को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। जैन धर्म में यह माना जाता है कि पर्युषण पर्व के दौरान किए गए उपवास, तपस्या, और क्षमावाणी से व्यक्ति के कर्म बंधन कट जाते हैं और वह मोक्ष की ओर अग्रसर होता है।

इसके साथ ही, इस पर्व के माध्यम से व्यक्ति में क्षमाशीलता, सरलता, और परोपकार की भावनाओं का विकास होता है। यह पर्व व्यक्ति को अपने भीतर की नकारात्मकताओं को पहचानने और उन्हें समाप्त करने का अवसर देता है। धार्मिक दृष्टिकोण से पर्युषण पर्व एक ऐसा समय होता है, जब व्यक्ति आत्मा की सच्ची शांति और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होता है।

पर्युषण पर्व जैन धर्म का एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण पर्व है, जो आत्मशुद्धि, आत्मसंयम, और मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक है। इस पर्व के दौरान जैन अनुयायी अपने जीवन में धर्म के सिद्धांतों का पालन करते हैं और आत्मा की शुद्धि के लिए तपस्या और साधना करते हैं। पर्युषण पर्व न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्व रखता है, जो समाज में शांति, एकता, और सद्भाव का संदेश फैलाता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि हमें अपने जीवन में संयम, शुद्धता, और सच्चाई का पालन करना चाहिए, और अपने कर्मों को सुधारने का प्रयास करना चाहिए, ताकि हम मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो सकें।

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