अमित शाह का प्रारंभिक जीवन और संघ से जुड़ाव
अमित शाह का सार्वजनिक जीवन संघ के तरुण स्वयंसेवक के रूप में 1980 में 16 साल की आयु में शुरू होता है। इस बीच वे अखिल भारतीय विद्यार्थी से भी जुड़े। 1982 में शाह को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की गुजरात इकाई का संयुक्त सचिव बनाया गया। परिषद कार्यकर्ता के साथ-साथ उन्होंने 1984 में भाजपा के लिए नारायणपुर वार्ड के सांघवी बूथ के पोलिंग एजेंट के नाते भी काम किया। वे इस वार्ड के वे पार्टी सचिव भी बने। वर्ष 1987 मेंअमित शाह भाजपा के युवा मोर्चा से जुड़े।
अध्ययनशील स्वभाव का होने के कारण अमित शाह अस्सी के दशक में दीनदयाल शोध संस्थान से भी जुड़े। वे इस संस्थान के प्रदेश इकाई में आठ वर्षों तक कोषाध्यक्ष के नाते जुड़े रहे। इस दौरान राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख के निकट रहने तथा उनकी कार्यशैली को देखें और सीखने का अवसर अमित शाह को मिला।
भाजपा में उभरते कदम
साल 1989 में अमित शाह भाजपा के अहमदाबाद नगर सचिव बने। इसी दौर में देशभर में श्री राम जन्मभूमि आन्दोलन की हवा चल रही थी। अमित शाह ने श्री राम जन्मभूमि आंदोलन और आगे चलकर एकता यात्रा में पार्टी द्वारा दिए अपने दायित्व को निभाया। श्री लालकृष्ण अडवाणी और श्री अटल बिहारी वाजपेयी जब–जब गांधीनगर लोकसभा से चुनाव लड़े तो उनके चुनाव प्रबंधनका दायित्व अमित शाह ने बखूबी संभाला। अडवाणी के लोकसभा चुनाव के प्रबंधन का यह दायित्व उन्होंने 2009 तक संभाला।
नब्बे के दशक में गुजरात में भाजपा का उभार तेजी से हो रहा था। श्री नरेंद्र मोदी भाजपा, गुजरात के संगठन सचिव थे। संगठन कार्य में ही अमित शाह का संपर्क श्री नरेंद्र मोदी से हुआ था। गुजरात में भाजपा द्वारा शुरू किये गये सदस्यता अभियान को व्यापक बनाने तथा उसका दस्तावेजीकरण करने के कार्य में शाहपार्टी नेतृत्व के साथ जुड़े रहे।
व्यावसायिक समझ और राजनीतिक प्रगति
व्यापारिक पृष्ठभूमि से आने वाले अमित शाह की वित्तीयव्यवस्था को लेकर समझ शुरूआती दौर में ही बहुत परिपक्व थी। राजनीति में प्रवेश केशुरूआती दिनों तक वे अपने व्यवसाय से जुड़े रहे। किंतु राजनीति में अधिक सक्रीय होने के बाद वे व्यवसाय कार्यों को समय नहीं दे सके।
“वर्ष 1995 में जब अमित शाह गुजरात प्रदेश वित्त निगम के अध्यक्ष बने, तब उन्हें निगम की स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए अपने व्यवसायिक समझ के सही उपयोग का अवसर मिला। उनकी वित्तीय सूझबूझ के कारण उनके कार्यकाल में निगम घाटे से न सिर्फ बाहर आया बल्कि इसके मुनाफे में 214 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई। उनके कार्यकाल में ही निगम में पहली बार पट्टा खरीद फरोख्त, कार्यशील पूंजी अवधि लोन और ट्रक ऋण की शुरूआत हुई।”
साल 1997 में अमित शाह को भारतीय जनता पार्टी के युवा मोर्चे का राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बनाया गया। इसी साल गुजरात की सरखेज विधानसभा के लिए हुए उपचुनाव में पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया और वे पहली बार 25,000 मतोंके अंतर से जीतकर विधायक बने। तबसे लेकर 2012 के विधानसभा चुनाव तक हर चुनाव में उनकी जीत का अंतर लगातार बढ़ता रहा और वे लगातार विधायक के नाते चुनकर आते रहे।
नारणपुरा से जब वह पांचवी बार विधानसभा का चुनाव लडे तो मतदाताओं की संख्या पूर्व से एक चौथाई रह जाने के बावजूद जीत का अंतर 63235 वोट रहा। विधायक के नाते अपने लंबे कार्यकाल में अमित शाह ने विधायक निधि के अलावा अन्य स्रोतों से क्षेत्र में विकास कार्यों को गति दी। 1998 में वे गुजरात भाजपा का प्रदेश सचिव बने तथा महज एक साल के अंदर उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गयी।
राजनीतिक और संगठनात्मक कुशलता
वर्ष 2000 में अमित शाह 36 वर्ष की उम्र में अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक (ADCB) के सबसे युवा अध्यक्ष बने। एक साल के उनके कार्यकाल में इस बैंक ने 20.28 करोड का घाटा पूरा किया तथा बैंक ने 6.60 करोड के लाभ में आकर 10 प्रतिशत लाभांश वितरण भी किया। इसके ठीक एक साल बाद 2001 में अमित शाह को भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय सहकारिता प्रकोष्ठ का संयोजक नियुक्त किया गया।
श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली बार गुजरात में हुए 2002 के विधानसभा चुनाव में आयोजित ‘गौरव-यात्रा‘ में शाह को पार्टी द्वारा महत्वपूर्ण दायित्व दिया गया। गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत हुई और अमित शाह सरकार में मंत्री बने। वे 2010 तक गुजरात सरकार में महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे।
उन्हें गृह विभाग, यातायात, निषेध, संसदीयकार्य, विधि और आबकारी जैसे महत्वपूर्ण विभागों के मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गयी। गृहमंत्री रहते उन्होंने पुलिस आधुनिकीकरण, सड़कों की सुरक्षा, अपराध में कमी को लेकर उन्होंने अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाये।
क्रिकेट और शतरंज में रुचि रखने वाले अमित शाह ने 2006 में मंत्री रहते हुए चेस एसोसिएशन के चेयरमैन का पदभार ग्रहण किया। ‘उन्होंने अहमदाबाद के प्राथमिक विद्यालयों में शतरंज को प्रयोग के तौर पर शामिल करवाया। ‘ यह प्रयोग बच्चों के मानसिक क्षमता के विकास में काफी उपयोगी साबित हुआ। आगे चलकर तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के सुझाव पर इसे प्रदेश भर के स्कूलों में शामिल कर लिया गया।
इस दौरान गुजरात में पहली बार शतरंज की राष्ट्रीय प्रतियोगिता ’’नेशनल बी’’ आयोजित हुई। 20 हजार खिलाड़ी प्रतियोगिता में शामिल हुए और यह गिनीजबुक ऑफ़ वर्ल्ड में दर्ज हुआ। 4 हजार महिला शतरंज खिलाड़ियों की प्रतियोगिता भी लिम्का बुक में दर्ज हुई।
2009 में श्री नरेंद्र मोदी कीअध्यक्षता में उन्हें गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन का वाईस-चेयरमैन बनने का भी मौका मिला। वे अहमदाबाद सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ़ क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रहे। इस दौरान क्रिकेट के क्षेत्र में गुजरात को कई ख्यातियां मिली। श्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अमित शाह गुजरात क्रिकेट एसोसीएशन के अध्यक्ष बने।
अमित शाह के पास गुजरात के गृहमंत्री होने के नाते सुरक्षा का दायित्व था। एक सजग और सचेत प्रशासक के रूप में अमित शाह कमजोर और लुंज-पुंज सुरक्षा को वे समाज और देश-प्रदेश के विकास में बड़ा बाधक मानते हैं। गुजरात में मंत्री रहते सुरक्षा से जुड़े विषयों पर वे गंभीरता से काम करते रहे।
गुजरात में मंत्री रहते सोहराबुद्दीन एनकाउन्टर का फर्जी आरोप अमित शाह पर लगा। उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफ़ा दिया। मुकदमे के दौरान उन्हें तीन महीने जेल में भी रहना पड़ा। फिर उन्हें जमानत देते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने कहा कि ‘‘अमित शाह के विरुद्ध प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता।” आगे चलकर 2015 में विशेष सीबीआई अदालत ने अमित शाह को इस टिप्पणी के साथ सभी आरोपों से बरी किया कि उनका केस ’’राजनीति से प्रेरित’’ था।
2012 में अमित शाह नारनपूरा से फिर विधायक चुने गये। भाजपा ने उनकी सांगठनिक क्षमता को राष्ट्रीय कार्य में उपयोग करने के लिए 2013 में उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय महामंत्री बना दिया। 2014 के चुनाव में भाजपा ने जब श्री नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया तो अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाकर भेजा गया। श्री नरेंद्र मोदी को देश ने बहुमत का जनादेश दिया तो यूपी से भाजपा को 73 सीटें मिलीं। यह एक बड़ी सफलता थी।
अमित शाह 9 जुलाई 2014 को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये गये। उनका पहला कार्यकाल 2016 तक चला। अपने पहले कार्यकाल में अमित शाह ने नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को संगठन की मजबूती का माध्यम बनाकर एक के बाद एक कई राज्यों में भाजपा के सांगठनिक आधार को मजबूत किया।
महा सदस्यता अभियान चलाकर भाजपा के सदस्यों की संख्या को सिर्फ पांच महीनों में 11 करोड़ तक पहुँचाया। पार्टी को युगानुकुल चलाने के लिए अमित शाह ने अध्यक्ष रहते अनेक नवाचार किये। विभागों और प्रकल्पों की रचना की। प्रवासों के चक्र को सघन बनाया। बैठकों को व्यवस्थित करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू हुए। कार्यालयों में पुस्तकालय और ई-पुस्तकालय पर उन्होंने विशेष जोर दिया।
आज भाजपा के केन्द्रीय कार्यालय सहित अनेक कार्यालयों में पुस्तकालय चल रहे हैं। उनके अध्यक्ष रहते हरियाणा, महाराष्ट्र,असम सहित नार्थ ईस्ट के राज्यों में पहली बार भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार बनी। इसके बाद भाजपा ने 2016 में उन्हें एक बार फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित किया। 2016 में वे सोमनाथ मंदिर न्यास के न्यासी भी बने।
साल 2017 में अमित शाह गुजरात से राज्यसभा सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद अमित शाह ने पार्टी की विचारधारा, कार्यशैली को आगे बढ़ाने लिए देश के हर राज्य में संगठनात्मक प्रवास किया। इस दौरान भाजपा को कई महत्वपूर्ण चुनावी सफलताएं भी मिली।
2019 का लोकसभा चुनाव आते-आते पार्टी का आधार देश भर में व्यापक हो चुका था। श्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का आधार और मजबूत हो चुका था। श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब भाजपा 2019 के चुनाव में गयी तो 2014 सेभी बड़ा जनादेश हासिल किया।
1997 से लागतार 2017 तक गुजरात विधानसभा सदस्य के के रूप में जन प्रतिनिधि रहे अमित शाह 2019 में पहली गांधीनगर से लोकसभा का चुनाव लड़े. उन्हें गांधीनगर से विराट जीत मिली. लगभग 70 फीसद वोट हासिल कर 5 लाख 57 हजार वोटों के अंतर से उन्होंने अपने निकटम प्रतिद्वंद्वी से जीत हासिल की.
2019 में दुबारा चुनकर आई मोदी सरकार में अमित शाह गृहमंत्री बने। वर्तमान में वे देश के गृहमंत्री के तौर पर अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं। गुजरात में गृहमंत्री रहते देश की सुरक्षा वसम्प्रभुता के लिए बाधक विषयों पर अमित शाह लगातार ध्यान आकर्षित करते थे।
आज जबवे देश के गृहमंत्री हैं तब श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उन विषयों पर उठाये जा रहे गंभीर क़दमों में अहम भागीदार बन रहे हैं। उनके गृहमंत्री रहते केंद्र की मोदी सरकार ने अनुच्छेद-370, समाननागरिक संहिता सहित देश की आंतरिक सुरक्षा को अभेद्द्य बनाने से जुड़े अनेक ऐतिहासिक और दशकों से लंबित विषयों पर समाधानपरक निर्णय लिए हैं।
अमित शाह सुरक्षा को देश की प्रगति में अहम् कारक मानते हैं. अनुच्छेद-370 जैसी दशकों से लंबित समस्या का स्थायी समाधान होने से कश्मीर घाटी में शान्ति और प्रगति की राह खुली है. कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद के मंसूबों को इस ऐतिहासिक निर्णयने हतोत्साहित और कमजोर किया है. वहां नवाचार की संभावनाएं तेजी से बढ़ रही हैं.
पूर्वोत्तर राज्यों की सीमाओं तथा वहां की आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी लंबित समस्याओं का शान्ति पूर्वक हल भी गृहमंत्री बनने के बाद अमित शाह ने किया. ब्रू-रियांग समझौता, असम-मेघालय सीमाविवाद का हल, बोडो समस्या का निराकरण जैसे प्रमुख विषय शामिल हैं.
वामपंथी उग्रवाद के खिलाफ जीरो टोलरेंस की नीति पर अमित शाह ने ठोस रणनीति बनाई. आज वामपंथी उग्रवाद का क्षेत्रफल दायरा तुलनातमक रूप से बहुत कम हुआ है. आतंकवाद को लेकर देश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की मुस्तैदी का परिणाम है कि आतंकवादी मंसूबे छिटफुटवाह्य सीमाओं तक सीमित हैं.
गृहमंत्री बनने के बाद अमित शाह ने आपदा प्रबन्धन के नए दृष्टिकोण को नरेंद्र मोदी जी के दस सूत्रीय एजेंडे के अनुरूप व्यवस्थित करने का पूरा खाका तैयार किया. आपदा प्रबन्धन को आपदा पूर्व की योजना से लेकर राहत एवं पुनर्वास तक का दृष्टिकोण रखा.
समाज में व्याप्त नशे के कारोबार की चुनौती तथा ड्रग्स कंट्रोल को लेकर गृहमंत्री रहते अमित शाह ने नीतिगत स्तर पर अनेक कदम उठाये, जो युगानुकूल भी हैं और प्रभावी भी सिद्ध हो रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 6 जुलाई, 2021 को जब सहकारिता मंत्रालय का गठन किया तो अमित शाह को सहकारिता मंत्री का दायित्व भी मिला. सहकारिता क्षेत्र में अमित शाह का अनुभव विस्तृत एवं व्यापक है. सहकारिता आंदोलनको आज के समय की चुनौतियों के लिए तैयार करने, अस्थिरता को समाप्त करने, पारदर्शिता युक्त व्यवस्था का निर्माण करने तथा सहकारिता क्षेत्र में छोटे से छोटे किसान का भरोसा बहाल करने लक्ष्य के साथ अमित शाह इस मंत्रालय के माध्यम से कार्य कर रहे हैं.
अलग-अलग तरह के खानों के शौक़ीन अमित शाह को साहिर लुधियानवी की लिखी गजलें पसंद हैं। साथ ही, उन्हें चेस खेलना पसंद है। 2006 के बाद से अब तक वे कभी विदेश यात्रा पर नहीं गये हैं। वे अपनी अनुशासित कार्यशैली के लिए जाने जाते हैं। इतिहास के अध्ययन में उनकी खास रुचि है तथा अध्यात्म के चिंतन में उनका नजरिया बड़ा स्पष्ट है। समग्रतः कर्मठता ही उनकी पहचान है।