भगवान दत्तात्रेय: त्रिदेवों का संयुक्त अवतार

21 Views
4 Min Read
भगवान-दत्तात्रेय
भगवान-दत्तात्रेय

भगवान दत्तात्रेय हिंदू धर्म के एक अनुपम देवता हैं, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और शिव—तीनों त्रिदेवों का सामूहिक रूप माना जाता है। वे ज्ञान, योग और त्याग के परम प्रतीक हैं तथा अवधूत परंपरा के आदि गुरु कहलाते हैं। “दत्त” शब्द का अर्थ “दान में दिया हुआ” है, जो उनके दिव्य जन्म की ओर इशारा करता है। विष्णु के अवतार के रूप में भी पूजे जाने वाले दत्तात्रेय शीघ्र कृपा करने वाले देवता हैं।

भगवान दत्तात्रेय का त्रिमुखी रूप

जन्म की पावन कथा

पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि महर्षि अत्रि और उनकी पतिव्रता पत्नी अनुसूया के पुत्र रूप में दत्तात्रेय का अवतरण हुआ। अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने ब्रह्मा, विष्णु और शिव संन्यासी वेश में उनके आश्रम पहुंचे। अनुसूया ने अपनी पतिव्रता शक्ति से उन्हें शिशु रूप दे दिया और मां की तरह स्तनपान कराया। इससे प्रसन्न होकर त्रिदेवों ने वरदान दिया कि अनुसूया का पुत्र उनके अंशों से जन्म लेगा। इस प्रकार दत्तात्रेय में ब्रह्मा का सृजन, विष्णु का पालन और शिव का संहार—तीनों तत्व समाहित हुए। उनके भाई चंद्रमा (ब्रह्मा अंश) और दुर्वासा (शिव अंश) थे।

महर्षि अत्रि, अनुसूया और शिशु दत्तात्रेय

उनका जन्म मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ था। इसी कारण हर वर्ष इस दिन दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। यह पर्व विशेष रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और आंध्र प्रदेश में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।

दत्तात्रेय जयंती का उत्सव

अनोखा स्वरूप और प्रतीक

दत्तात्रेय का स्वरूप अत्यंत प्रतीकात्मक है:

  • तीन मुख: ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतीक।
  • छह हाथ: शंख, चक्र, गदा, त्रिशूल जैसे विभिन्न आयुध धारण करते हुए।
  • चार कुत्ते: चार वेदों के प्रतीक।
  • एक गौ: पृथ्वी माता का प्रतिनिधित्व।

वे प्रायः अवधूत (दिगंबर) रूप में दर्शाए जाते हैं, जो पूर्ण वैराग्य और निर्लिप्तता का संदेश देते हैं।

चार कुत्तों और गौ के साथ भगवान दत्तात्रेय

भगवान दत्तात्रेय का दिव्य रूप

24 गुरुओं की अनमोल शिक्षा

दत्तात्रेय की सबसे प्रेरणादायक शिक्षा उनके 24 गुरुओं की है। जब राजा यदु ने उनसे गुरु का नाम पूछा, तो उन्होंने बताया कि उन्होंने प्रकृति और विभिन्न जीवों से ज्ञान प्राप्त किया। पृथ्वी से धैर्य, वायु से निर्लिप्तता, आकाश से सर्वव्यापकता, जल से पवित्रता, अग्नि से क्रोध पर नियंत्रण—ऐसे अनेक उदाहरण हैं। कबूतर से मोह त्याग, अजगर से संतोष, मधुमक्खी से संग्रह न करने की सीख ली।

इससे उनका संदेश स्पष्ट है: ज्ञान सर्वत्र बिखरा है, इसे ग्रहण करने की दृष्टि चाहिए। आत्मा ही परम गुरु है।

महत्व और आराधना

दत्तात्रेय योगेश्वर और जगद्गुरु हैं। उनकी पूजा से त्रिदेव प्रसन्न होते हैं, अनिष्ट निवारण होता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। नाथ संप्रदाय, अवधूत परंपरा और योग साधकों के वे प्रमुख आराध्य हैं। गिरनार (गुजरात), गाणगापूर (महाराष्ट्र) और नरसोबाची वाडी जैसे तीर्थस्थल उनके प्रमुख केंद्र हैं।

जयंती पर व्रत, पूजा, भजन और गुरुचरित्र पाठ का विशेष महत्व है। लोकप्रिय मंत्र हैं—”दिगंबरा दिगंबरा श्रीपाद वल्लभ दिगंबरा” तथा “श्री गुरुदेव दत्त”।

भगवान दत्तात्रेय की कृपा जीवन में ज्ञान, शांति और मुक्ति का द्वार खोलती है। उनकी जयंती हमें प्रकृति से सीखने और वैराग्यपूर्ण जीवन की प्रेरणा देती है।

जय श्री गुरुदेव दत्त!

The short URL of the present article is: https://moonfires.com/91b9
Share This Article
Follow:
राज पिछले 20 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं। Founder Of Moonfires.com
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *