भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल का नाम सुनते ही दिमाग में एक कुशाग्र बुद्धि, शांत कदमों और अचूक रणनीतियों की तस्वीर उभर आती है। वह एक ऐसा शख्स जिसने परदे के पीछे रहकर, बिना शोर-शराबे के, भारत की सुरक्षा का ऐसा ताना-बाना बुना है, जिसे भेद पाना दुश्मनों के लिए किसी दुर्गम चोटी को पार करने जैसा है। आइए आज उन्हीं के जीवन और कारनामों पर विस्तार से नजर डालें।
असाधारण शुरुआत, अविश्वसनीय पथ:
1945 में जन्मे डोभाल की कहानी किसी जासूसी उपन्यास से कम रोमांचक नहीं है। इतिहास में स्नातकोत्तर करने के बाद उन्होंने परंपरागत रास्ते छोड़, भारतीय पुलिस सेवा में कदम रखा। केरल कैडर के अधिकारी के रूप में उनकी सूझबूझ जल्द ही पहचानी गई और उन्हें असम के उग्रवाद के दलदल में फंसे भारत को बाहर निकालने का जिम्मा सौंपा गया। उल्फा जैसे संगठनों को उनकी रणनीतिक चपेट में आते देर नहीं लगी और असम में शांति का सूरज धीरे-धीरे फिर से निकलने लगा।
खुफिया जगत में जांबाज का सफर:
1985 में डोभाल इंटेलिजेंस ब्यूरो में शामिल हुए, जहां उनकी प्रतिभा को एक नए आयाम पर पंख लगे। पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों की चाल को समझना और उसका तोड़ निकालना उनकी विशेषता बन गई। 1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तान की नापाक हरकतों की पहले से भनक लगाकर भारतीय सेना को सचेत करना उनकी ही सूझबूझ थी। इसके अलावा, 1998 में इंडियन एयरलाइंस के विमान अपहरण जैसे संकटों के समाधान में भी उनकी भूमिका निर्णायक साबित हुई।
राष्ट्रीय सुरक्षा की कमानी संभालते हुए:
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किए जाने के बाद से डोभाल ने इस महत्वपूर्ण पद की गरिमा को बखूबी निभाया है। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ कूटनीतिक मोर्चे पर डोभाल की पैनी नजर ने भारत को मजबूत बनाया है। सीमा पार से होने वाली घुसपैठ को नाकाम करने के लिए बनाई गई उनकी ठोस रणनीति आज देश की ढाल बनकर खड़ी है। 2016 के उरी हमले के बाद दुश्मनों को उनके ही मैदान पर पटखनी देने वाले सर्जिकल स्ट्राइक के फैसले में भी उनकी सहमति ही निर्णायक साबित हुई।
रहस्य से जुड़ी एक सफल हस्ती:
डोभाल की शख्सियत उतनी ही पहेलियों से भरी है, जितनी उनके मिशन। वह सुर्खियों से दूर रहना पसंद करते हैं और अपने काम को ही बोलने देते हैं। उनकी उपलब्धियों के बावजूद उनके निजी जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी सामने आई है, जो उनकी छवि को और भी रहस्यमयी बनाती है। मगर एक बात तो तय है, यह रहस्य ही उनकी सफलता का एक बड़ा राज भी है।
निष्कर्ष रूप में, अजित डोभाल भारत की सुरक्षा का वह अदृश्य रक्षक हैं, जिसकी चुप्पी ही दुश्मनों के लिए सबसे बड़ा खतरा है। उनकी दूरदर्शिता, दृढ़ संकल्प और रणनीतिक कौशल ने भारत को सुरक्षा के मामले में एक मिसाल बनाया है। वह न सिर्फ भारतीय खुफिया जगत के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा हैं, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में सदैव अंकित रहेगा।
१. अजीत डोभाल पाकिस्तान कैसे गए थे?
आपको जानकर हैरानी होगी कि इन्होंने सात साल तक पाकिस्तान में रह कर भारत के लिए जासूसी की थी. दरअसल, अजीत डोभाल केरल कैडर के आईपीएस अधिकारी थे… लेकिन उनका सपना और उनकी काबीलियत उन्हें पुलिस सर्विस की बजाय रॉ के दफ्तर ले गई. वहां, ट्रेनिंग लेने के बाद उन्हें एक मिशन पर पाकिस्तान भेजा गया.
२. अजीत डोभाल क्यों प्रसिद्ध है?
सन 1988 में हुए ऑपरेशन ब्लैक थंडर-टू में डोभाल की भूमिका ने उनकी ख्याति में चार चाँद लगा दिए थे. उनके जीवनीकारों का कहना है कि जब चरमपंथी स्वर्ण मंदिर के अंदर घुसे हुए थे तो डोभाल भी अंडर कवर के रूप में मंदिर के अंदर घुसे हुए थे.
३. अजीत डोभाल पाकिस्तान में कितने साल रहे थे?
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बारे में कहा जाता है कि उनकी चर्चा होने पर पाकिस्तान के हुक्मरानों के पसीने छूटने लगते हैं। वह 7 साल पाकिस्तान में जासूस रहे। उनका नाम जेहन में आते ही एक जासूस, जांबाज, तेजतर्रार और इंटेलिजेंट अफसर की छवि उभरती है।
४. अजीत डोभाल को कीर्ति चक्र क्यों दिया गया?
अजीत कुमार डोभाल अपनी बेहतरीन सेवाओं के लिए पुलिस मेडल पाने वाले सबसे कम उम्र के अधिकारी हैं, उनकी सेवाओं के केवल 6 वर्ष बाद यह मेडल दिया गया था।
५. अजीत डोभाल को कीर्ति चक्र से कब सम्मानित किया गया?
अजीत डोभाल को 1988 में देश में शांतिकाल के द्वितीय सर्वोच्च वीरता पुरस्कार कीर्ति चक्र से पुरस्कृत किया गया था।