ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना: भारत के भविष्य का खाका
ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना, जिसे “ग्रेट निकोबार मास्टर प्लान” के नाम से भी जाना जाता है, भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी पहल है जिसका उद्देश्य भारत के सबसे दक्षिणी द्वीप को एक बहुआयामी सामरिक और आर्थिक केंद्र में बदलना है। 2020 में नीति आयोग द्वारा परिकल्पित इस परियोजना में अनुमानित 72,000 करोड़ रुपये का निवेश शामिल है और यह अगले 30 वर्षों में चरणों में विकसित की जाएगी।
परियोजना के मुख्य घटक और विस्तृत लाभ:
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ट्रांसशिपमेंट पोर्ट (गालाथिया बे):
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रणनीतिक स्थान: गालाथिया बे दुनिया के सबसे व्यस्त शिपिंग लेन में से एक के करीब स्थित है, जो पूर्व-पश्चिम अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग चैनल पर है। वर्तमान में, भारतीय कार्गो का एक बड़ा हिस्सा कोलंबो, सिंगापुर और पोर्ट क्लांग जैसे विदेशी बंदरगाहों पर ट्रांसशिप होता है। यह परियोजना इस निर्भरता को कम करेगी।
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आर्थिक लाभ: यह पोर्ट “मदर वेसल्स” (बड़े कंटेनर जहाज) को संभालने में सक्षम होगा, जिससे भारतीय निर्यातकों और आयातकों के लिए समय और लागत दोनों की बचत होगी। यह भारत को वैश्विक समुद्री व्यापार मानचित्र पर एक केंद्रीय स्थिति प्रदान करेगा और एक क्षेत्रीय ट्रांसशिपमेंट हब के रूप में उभरेगा। इससे देश को हर साल अरबों डॉलर की बचत हो सकती है जो वर्तमान में विदेशी बंदरगाहों को जाते हैं।
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ग्रीनफील्ड अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (कैंपबेल बे):
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दोहरी उपयोगिता: यह हवाई अड्डा सैन्य और नागरिक दोनों उद्देश्यों की पूर्ति करेगा। यह भारतीय नौसेना और वायु सेना के लिए एक महत्वपूर्ण फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस के रूप में काम करेगा, जो हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की पहुंच और निगरानी क्षमताओं को बढ़ाएगा।
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पर्यटन और कनेक्टिविटी: अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को संभालने की क्षमता के साथ, यह हवाई अड्डा ग्रेट निकोबार और आसपास के द्वीपों में पर्यटन को बढ़ावा देगा। यह मुख्य भूमि भारत और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ कनेक्टिविटी में सुधार करेगा, जिससे व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
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एकीकृत औद्योगिक परिसर और टाउनशिप:
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आर्थिक विविधता: इस परिसर में विभिन्न उद्योगों जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, नवीकरणीय ऊर्जा और फार्मास्यूटिकल्स को आकर्षित करने की योजना है। यह द्वीप पर एक मजबूत आर्थिक आधार बनाएगा जो केवल पर्यटन या मत्स्य पालन पर निर्भर नहीं करेगा।
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रोजगार सृजन: निर्माण और परिचालन चरण दोनों में लाखों रोजगार के अवसर पैदा होने की उम्मीद है, जिससे स्थानीय आबादी और मुख्य भूमि भारत से कुशल श्रमिकों को लाभ होगा। एक नई टाउनशिप का विकास श्रमिकों और उनके परिवारों के लिए आवास और सुविधाएं प्रदान करेगा।
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गैस आधारित बिजली संयंत्र:
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ऊर्जा सुरक्षा और स्थिरता: यह बिजली संयंत्र द्वीप की बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए एक विश्वसनीय और स्थायी ऊर्जा स्रोत प्रदान करेगा। यह वर्तमान में डीजल जनरेटर पर निर्भरता को कम करेगा, जिससे परिचालन लागत कम होगी और कार्बन उत्सर्जन भी घटेगा।
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भविष्य की योजनाएं: दीर्घकालिक योजनाओं में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, जैसे सौर और पवन ऊर्जा, को भी शामिल करने की संभावना है, ताकि द्वीप को एक “ग्रीन एनर्जी हब” बनाया जा सके।
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बढ़े हुए रणनीतिक और भू-राजनीतिक आयाम:
ग्रेट निकोबार परियोजना केवल आर्थिक विकास से कहीं अधिक है; यह भारत की एक्ट ईस्ट नीति और इंडो-पैसिफिक रणनीति का एक अभिन्न अंग है।
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समुद्री सुरक्षा: चीन की हिंद महासागर में बढ़ती उपस्थिति (उदाहरण के लिए, श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह) के जवाब में, ग्रेट निकोबार भारत के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतिसंतुलन प्रदान करेगा। यह भारतीय नौसेना को समुद्री डकैती विरोधी अभियानों, आपदा राहत और निगरानी गतिविधियों के लिए एक मजबूत आधार देगा।
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क्षेत्रीय सहयोग: यह परियोजना आसियान (ASEAN) देशों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत कर सकती है, जिससे व्यापार और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
पर्यावरण और जनजातीय समुदाय पर प्रभाव: एक संतुलित दृष्टिकोण
परियोजना को लेकर सबसे बड़ी चिंताओं में से एक इसके पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव हैं। ग्रेट निकोबार एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है, जिसमें शोम्पेन और निकोबारी जैसी कमजोर जनजातीय आबादी निवास करती है।
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पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA): सरकार ने दावा किया है कि एक विस्तृत EIA आयोजित किया गया है और परियोजना को “शून्य नेट डिग्रेडेशन” सिद्धांत पर विकसित किया जाएगा। इसमें व्यापक वनीकरण (लगभग 260 वर्ग किलोमीटर में 15 मिलियन पेड़ लगाने की योजना), मैंग्रोव का संरक्षण, और समुद्री कछुओं के घोंसले बनाने वाले स्थानों की सुरक्षा के लिए उपाय शामिल हैं।
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शोम्पेन जनजाति: सरकार ने शोम्पेन जनजाति के लिए “नो-गो” जोन और विशेष सुरक्षा उपायों का आश्वासन दिया है ताकि उनकी पारंपरिक जीवन शैली और आवासों को न्यूनतम रूप से प्रभावित किया जा सके। हालांकि, इस पर हमेशा एक बहस रही है कि विकास परियोजनाओं का स्वदेशी समुदायों पर क्या प्रभाव पड़ता है।
गांधी-वाड्रा परिवार और राजनीतिक विरोध:
जैसा कि आपने उल्लेख किया है, गांधी-वाड्रा परिवार से जुड़े नेताओं ने अक्सर इस परियोजना पर सवाल उठाए हैं। उनके विरोध के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
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पर्यावरणीय विनाश: उनका तर्क है कि परियोजना से द्वीप के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को अपूरणीय क्षति होगी।
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जनजातीय अधिकार: वे शोम्पेन और अन्य जनजातियों के अधिकारों और आजीविका पर परियोजना के संभावित नकारात्मक प्रभावों पर चिंता व्यक्त करते हैं।
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पारदर्शिता और व्यवहार्यता: परियोजना की मंजूरी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी और इसकी वित्तीय व्यवहार्यता पर भी सवाल उठाए गए हैं।
हालांकि, सरकार और परियोजना के समर्थकों का दावा है कि ये आपत्तियां अक्सर राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित होती हैं और देश के व्यापक रणनीतिक और आर्थिक हितों की अनदेखी करती हैं। वे तर्क देते हैं कि भारत को वैश्विक शक्ति बनने के लिए ऐसी बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की आवश्यकता है और पर्यावरणीय चिंताओं को जिम्मेदारी से संबोधित किया जा रहा है।
संक्षेप में, ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती है, जो देश को रणनीतिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक रूप से मजबूत कर सकती है, बशर्ते कि पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान किया जाए।



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