धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु का बदला: एक ऐतिहासिक गाथा
छत्रपति संभाजी महाराज, मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र, न केवल एक वीर योद्धा थे, बल्कि हिंदवी स्वराज्य और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले धर्मवीर भी थे। उनकी मृत्यु ने मराठा साम्राज्य को झकझोर दिया, लेकिन इस बलिदान ने मराठों में एक ऐसी ज्वाला प्रज्वलित की, जिसने मुगल साम्राज्य की नींव हिला दी। इस लेख में हम संभाजी महाराज की मृत्यु, इसके पहले और बाद की घटनाओं, और उनके बलिदान का बदला लेने की गाथा को विस्तार से देखेंगे।
संभाजी महाराज का जीवन और शासन: पृष्ठभूमि (1657-1680)
छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को पुरंदर किले में हुआ था। उनके पिता छत्रपति शिवाजी महाराज और माता सईबाई थीं। मात्र ढाई वर्ष की आयु में माता सईबाई का निधन हो गया, जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनकी दादी, राजमाता जीजाबाई ने किया। जीजाबाई ने संभाजी में राष्ट्रप्रेम, धर्मनिष्ठा, और स्वराज्य के आदर्शों का बीज बोया। संभाजी ने संस्कृत, मराठी, और अन्य भाषाओं में प्रवीणता हासिल की और मात्र 14 वर्ष की आयु में बुधभूषण, नखशिख, और सातशातक जैसे संस्कृत ग्रंथों की रचना की, जो उनकी विद्वत्ता का प्रमाण हैं।
- 1666: जब शिवाजी महाराज को औरंगजेब ने आगरा में कैद किया, तब नौ वर्षीय संभाजी उनके साथ थे। इस अनुभव ने उन्हें मुगल दरबार की चालबाजियों से परिचित कराया।
- 1670: संभाजी ने अपने पहले युद्ध में विजय प्राप्त की, जो उनकी वीरता का प्रारंभिक परिचय था।
- 1680: शिवाजी महाराज के निधन के बाद, संभाजी ने मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली। 20 जुलाई 1680 को उनका राज्याभिषेक हुआ, और उन्होंने “शककर्ता” और “हिंदवी धर्मोधारक” की उपाधियाँ धारण कीं।
संभाजी महाराज ने अपने शासनकाल में 120 से अधिक युद्ध लड़े और एक भी युद्ध में पराजय नहीं हुई। उन्होंने मुगलों, पुर्तगालियों, और अन्य शत्रुओं के खिलाफ मराठा साम्राज्य की रक्षा की। उनके शासनकाल में हिंदुओं के जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए विशेष प्रयास किए गए, जैसे हरसूल गाँव के ब्राह्मण कुलकर्णी को हिंदू धर्म में पुनः शामिल करना।
संभाजी महाराज की मृत्यु: एक क्रूर अध्याय (1689)
1689 की शुरुआत में, संभाजी महाराज के बहनोई गानोजी शिर्के और मुगल सरदार मुकर्रब खान ने संगमेश्वर में उन पर घात लगाकर हमला किया। यह हमला विश्वासघात का परिणाम था, क्योंकि गानोजी ने मुगलों के साथ मिलकर संभाजी को पकड़ने की साजिश रची। 1 फरवरी 1689 को संभाजी और उनके विश्वासपात्र सलाहकार कवि कलश को मुगल सेना ने बंदी बना लिया। उन्हें बहादुरगढ़ ले जाया गया, जहाँ औरंगजेब ने उनके सामने इस्लाम कबूल करने की शर्त रखी।
संभाजी ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और लिखा, “बिल्कुल नहीं, अगर बादशाह अपनी बेटी भी मुझे दे, तब भी नहीं।” इस जवाब ने औरंगजेब को क्रोधित कर दिया। इसके बाद, संभाजी और कवि कलश को 40 दिनों तक अमानवीय यातनाएँ दी गईं। उनकी जीभ काटी गई, आँखें फोड़ी गईं, नाखून उखाड़े गए, और चमड़ी उधेड़ी गई। फिर भी, संभाजी ने “जय भवानी” और “हर हर महादेव” के नारे लगाते हुए अपने धर्म और स्वराज्य के प्रति निष्ठा बनाए रखी।
11 मार्च 1689 को, फाल्गुन अमावस्या के दिन, तुलजापुर के पास कोरेगांव में औरंगजेब के आदेश पर संभाजी का सिर कलम कर दिया गया। उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर भीमा नदी में फेंक दिए गए। औरंगजेब ने उनके सिर को दक्षिण के प्रमुख शहरों में घुमाकर मराठों और हिंदुओं में भय फैलाने की कोशिश की।
मृत्यु का प्रभाव और मराठा साम्राज्य का पुनर्जनन (1689-1707)
संभाजी महाराज की मृत्यु ने मराठा साम्राज्य को गहरा आघात पहुँचाया, लेकिन यह बलिदान मराठों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना। औरंगजेब को लगा था कि संभाजी की मृत्यु से मराठा साम्राज्य कमजोर हो जाएगा, लेकिन हुआ इसका उलटा। संभाजी की शहादत ने मराठों में जोश भरा और उनके सारे मतभेद समाप्त हो गए।
- नवंबर 1689: औरंगजेब के सेनापति जुल्फिकार खान ने रायगढ़ किले पर कब्जा कर लिया और संभाजी की पत्नी महारानी येसुबाई, उनके सात वर्षीय पुत्र शाहू, और परिवार के अन्य सदस्यों को बंदी बना लिया। उन्हें मुगल दरबार में राजनीतिक बंदी के रूप में रखा गया ताकि मराठा विद्रोह को कमजोर किया जा सके।
- संभाजी के छोटे भाई राजाराम महाराज को 1689 में छत्रपति के पद पर आसीन किया गया। राजाराम ने जिंजी किले को अपनी अस्थायी राजधानी बनाकर मुगलों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनाई।
- इस दौरान, मराठा सेनापतियों, विशेष रूप से संताजी घोरपड़े और धनाजी जाधव, ने मुगल सेना को लगातार परेशान किया।
बदले की आग: संताजी घोरपड़े और मुकर्रब खान का अंत (1689)
संभाजी महाराज की मृत्यु का बदला लेने की जिम्मेदारी मराठा सेनापति संताजी घोरपड़े ने उठाई। संताजी, मराठा साम्राज्य के वरिष्ठ घोरपड़े वंश के थे, और उनके पिता माल्होजी घोरपड़े संभाजी के साथ संगमेश्वर में वीरगति को प्राप्त हुए थे। इस घटना ने संताजी को मुगलों के खिलाफ बदले की आग से भर दिया।
मुगल सरदार मुकर्रब खान, जिसने संभाजी को छल से बंदी बनाया था, औरंगजेब द्वारा महाराष्ट्र के कोल्हापुर और कोकण प्रांत का सूबेदार नियुक्त किया गया था। औरंगजेब ने उसे 50,000 रुपये का इनाम भी दिया था। मराठों ने प्रण लिया कि मुकर्रब खान को जीवित नहीं छोड़ेंगे।
दिसंबर 1689 में, संताजी घोरपड़े ने मुकर्रब खान की विशाल मुगल सेना को घेर लिया। इस घनघोर युद्ध में संताजी ने मुकर्रब खान को दौड़ा-दौड़ाकर मारा। खून से लथपथ मुकर्रब खान की दुर्दशा देखकर मुगल सेना उसे जंगलों में लेकर भागी, लेकिन मराठों के दिए घावों ने जंगल में तड़प-तड़प कर उसकी जान ले ली। इस तरह, संभाजी महाराज की मृत्यु का बदला पूरा हुआ।
संताजी के इस साहस और शौर्य से प्रसन्न होकर, 1691 में छत्रपति राजाराम महाराज ने उन्हें मराठा साम्राज्य का सरसेनापति घोषित किया। इसके बाद, संताजी और धनाजी जाधव ने मिलकर मुगल क्षेत्रों, जैसे कृष्णा नदी और कर्नाटक, में तबाही मचाई और मराठा साम्राज्य की विजय का डंका बजाया।
बाद की घटनाएँ और मुगल साम्राज्य का पतन (1707 और उसके बाद)
संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद, मराठा साम्राज्य ने औरंगजेब के खिलाफ अपना संघर्ष तेज कर दिया। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद, मुगल साम्राज्य कमजोर पड़ गया। औरंगजेब ने अपने जीवन के अंतिम 27 वर्ष दक्षिण में मराठों से लड़ते हुए बिताए, लेकिन वह उन्हें पूरी तरह कुचल नहीं सका।
1707 में, औरंगजेब की मृत्यु के बाद सत्ता संघर्ष शुरू हुआ, और शाहू महाराज, जो 1689 से मु>मुगल कैद में थे, को रिहा कर दिया गया। शाहू ने मराठा साम्राज्य को पुनर्जनन किया और मुगलों पर कई विजय प्राप्त कीं। धीरे-धीरे, मराठा साम्राज्य इतना शक्तिशाली बन गया कि दिल्ली पर उनका प्रभाव बढ़ने लगा, और मुगल शासक नाममात्र के बादशाह बनकर रह गए।
निष्कर्ष
धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज की मृत्यु एक त्रासदी थी, लेकिन इसने मराठा साम्राज्य को और मजबूत किया। संताजी घोरपड़े ने दिसंबर 1689 में मुकर्रब खान को मारकर उनके बलिदान का बदला लिया, जिसने मुगल सेना के मनोबल को तोड़ दिया। संभाजी महाराज का जीवन, उनकी वीरता, और उनका बलिदान आज भी हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी शहादत ने न केवल मराठा साम्राज्य को एकजुट किया, बल्कि मुगल साम्राज्य के पतन की नींव भी रखी।
संदर्भ:
- मराठा इतिहास के अभिलेख
- छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित ग्रंथ
- मुगल साम्राज्य के पतन के ऐतिहासिक दस्तावेज
यह गाथा हमें सिखाती है कि सच्चाई, धर्म, और स्वराज्य के लिए किया गया बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता। संभाजी महाराज की वीरता और संताजी घोरपड़े का शौर्य भारतीय इतिहास में अमर रहेगा।