पुण्यतिथि – वीर विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Savarkar) की आज पुण्यतिथि है. 1966 में आज ही के दिन उनका निधन हुआ था. सावरकर क्रान्तिकारी, चिन्तक, लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता और दूरदर्शी राजनेता थे. विनायक सावरकर का जन्म नासिक के निकट भागुर गांव में हुआ था. उनकी माता जी का नाम राधाबाई और पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था.

प्रारंभिक वर्षों के दौरान स्वतंत्रता गतिविधियों में भागीदारी
विनायक दामोदर सावरकर जीने पुणे के ‘फर्ग्यूसन कॉलेज’ से पढ़ाई की और स्नातक की डिग्री प्राप्त की, श्यामजी कृष्ण वर्मा ने उन्हें इंग्लैंड में अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त करने में सहायता की. उन्होंने ‘ग्रेज़ इन लॉ कॉलेज’ में दाखिला लिया और ‘इंडिया हाउस’ में शरण ल. यह उत्तरी लंदन का छात्र निवास था, वीर सावरकर ने लंदन में अपने साथी भारतीय छात्रों को अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई के लिए ‘फ्री इंडिया सोसाइटी’ बनाने के लिए प्रेरित किया.
सावरकर फर्ग्यूसन कॉलेज में रहते हुए गुप्त समितियों के गठन में सक्रिय थे. सावरकर ने एक हस्तलिखित साप्ताहिक आर्यन वीकली बनाया जिसमें उन्होंने देशभक्ति, साहित्य, इतिहास और विज्ञान पर ज्ञानवर्धक लेख प्रकाशित किए. साप्ताहिक की कोई भी विचारोत्तेजक पोस्ट स्थानीय साप्ताहिक और समाचार पत्रों में वितरित की जाती थी. सावरकर अक्सर विश्व इतिहास, इटली, नीदरलैंड और अमेरिका में क्रांतियों पर अकादमिक वार्ता और बहस करते थे, और अपने सहयोगियों को अपनी खोई हुई स्वतंत्रता को पुनः प्राप्त करने में उन देशों के तनाव और संघर्ष की समझ देते थे.
उन्होंने अपने देशवासियों से सभी अंग्रेजी से नफरत करने और विदेशी सामान खरीदने से परहेज करने का भी आग्रह किया। सदी के अंत में सावरकर ने मित्र मेला समुदाय की स्थापना की. यह तह गुप्त रूप से योग्यता और वीरता के चुने हुए युवाओं द्वारा शुरू की गई थी. 1904 में, मित्र मेला अभिनव भारत सोसाइटी के रूप में विकसित हुआ, जिसका नेटवर्क पूरे पश्चिमी और मध्य भारत में फैल गया, और जिसकी शाखाएँ गदर पार्टी बन गईं.
वीर सावरकर की मृत्यु कैसे हुई ?
आमतौर पर माना जाता है कि उन्होंने खुद अपने लिए इच्छा मृत्यु जैसी स्थिति चुनी थी. उनका निधन 26 फरवरी 1966 को हुआ था (पुण्यतिथि – वीर विनायक दामोदर सावरकर). उससे एक महीने पहले से उन्होंने उपवास करना शुरू कर दिया था. माना जाता है कि इसी उपवास के कारण उनका शरीर कमजोर होता गया और फिर 82 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया. दरअसल कालापानी की सजा ने उनके स्वास्थ्य पर बहुत गहरा असर डाला था.
इच्छा मृत्यु के थे समर्थक
सावरकर ने अपनी मृत्यु से दो साल पहले 1964 में ‘आत्महत्या या आत्मसमर्पण’ नाम का एक लेख लिखा था. इस लेख में उन्होंने अपनी इच्छा मृत्यु के समर्थन को स्पष्ट किया था. इसके बारे में उनका कहना था कि आत्महत्या और आत्म-त्याग के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर होता है.
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