आधुनिक योग के जनक: पद्मविभूषण बी. के. एस. अयंगार

Raj K
बी. के. एस. अयंगार

बी. के. एस. अयंगार (B. K. S. Iyengar) का जन्म 14 दिसंबर 1918 को कर्नाटक के बेलगाम जिले में हुआ था। उनका पूरा नाम बिक्रम चंद्रराव कृष्णमाचार्य अयंगार था। अयंगार जी ने योग के क्षेत्र में जो योगदान दिया, उसने उन्हें न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। उनके द्वारा विकसित ‘अयंगार योग’ ने आधुनिक योग को एक नई दिशा दी और इसे एक विस्तृत दर्शक वर्ग तक पहुँचाया।

पद्मविभूषण बी. के. एस. अयंगार
पद्मविभूषण बी. के. एस. अयंगार


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

अयंगार जी का जीवन प्रारंभिक वर्षों में अनेक कठिनाइयों से भरा था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और अयंगार जी की सेहत भी अच्छी नहीं थी। 15 वर्ष की उम्र में उन्होंने योग का अध्ययन शुरू किया। उनके गुरु श्री टी. कृष्णमाचार्य के मार्गदर्शन में उन्होंने योग की गहरी समझ प्राप्त की। अयंगार जी ने अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और शारीरिक मजबूती पाने के लिए योग का अभ्यास किया और धीरे-धीरे अपने शरीर को योग के प्रति अनुकूलित किया।

व्यक्तिगत जीवन

अयंगार जी का विवाह 1937 में हुआ और उनकी एक बेटी और एक बेटा हुआ। उनकी पत्नी का नाम रामानाथ अयंगार था, जिन्होंने उनके जीवन और कार्य में महत्वपूर्ण समर्थन दिया। उनके परिवार का योग में योगदान और उनकी शिक्षा ने अयंगार जी की प्रेरणा को और भी बढ़ाया।

अयंगार योग का विकास और प्रमुख योगदान

  1. योग का सार्वभौमिकरण: अयंगार जी ने योग को केवल एक धार्मिक या आध्यात्मिक अभ्यास से बाहर निकालकर इसे एक शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की प्रणाली के रूप में प्रस्तुत किया।
  2. आयंगार योग की विशेषताएँ:
    • सही तकनीक और सटीकता: अयंगार योग में आसनों की सटीकता पर जोर दिया जाता है। उन्होंने आसनों में सही तकनीक को प्राथमिकता दी, जिससे शरीर के विभिन्न अंग संतुलित और मजबूत हो सके।
    • आधिकारिक उपकरणों का उपयोग: उन्होंने योगाभ्यास के लिए कुर्सियाँ, बेल्ट्स, ब्लॉक्स और अन्य उपकरणों का उपयोग किया, जिससे योग को अधिक सुलभ और प्रभावी बनाया जा सके।
    • व्यक्तिगत अनुकूलन: अयंगार योग ने हर व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थिति के अनुसार योग आसनों को अनुकूलित किया, जिससे सभी आयु और क्षमताओं के लोग इसका लाभ उठा सकें।

प्रमुख उपलब्धियाँ:

  1. पुस्तकें और शिक्षण: अयंगार जी ने कई प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं, जिनमें ‘लाइट ऑन योगा’ (1966) और ‘लाइट ऑन प्राणायाम’ शामिल हैं। उनकी ये किताबें योग की गहराई और व्यापकता को प्रस्तुत करती हैं और विश्वभर में योग के प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  2. अंतर्राष्ट्रीय पहचान: अयंगार जी के योग शिक्षण ने उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई। उन्होंने विश्वभर के कई देशों में योग कार्यशालाएँ और सेमिनार आयोजित किए, जिससे योग की विधियों और सिद्धांतों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता मिली।
  3. पुरस्कार और सम्मान: बी. के. एस. अयंगार को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें भारत सरकार द्वारा प्रदान किया गया पद्मविभूषण (1999) और अन्य कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान शामिल हैं।

    पुस्तकें और लेखन 

    बी. के. एस. अयंगार ने योग के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण और प्रभावशाली पुस्तकें लिखी हैं, जिनका विश्वभर में व्यापक स्वागत हुआ है। उनकी पुस्तकों ने योग की गहराई और व्यावहारिकता को प्रस्तुत किया और उन्हें योग के प्रमुख प्रवर्तक के रूप में स्थापित किया। उनकी प्रमुख पुस्तकों में शामिल हैं:

    • ‘लाइट ऑन योगा’ (1966): इस पुस्तक को अयंगार जी की सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली कृति माना जाता है। यह पुस्तक योग के आसनों, प्राणायाम, और ध्यान के विभिन्न पहलुओं को विस्तृत रूप से समझाती है। इसमें आसनों की विधि, उनके लाभ, और प्रैक्टिस के लिए गाइडलाइंस शामिल हैं। यह पुस्तक योग के शास्त्रीय सिद्धांतों को एक सरल और व्यावहारिक तरीके से प्रस्तुत करती है और योगाभ्यासियों के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ बन गई है।
    • ‘लाइट ऑन प्राणायाम’ (1985): इस पुस्तक में प्राणायाम, यानी श्वास नियंत्रण की तकनीकों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। अयंगार जी ने इस पुस्तक में प्राणायाम के विभिन्न प्रकारों, उनके लाभों, और अभ्यास विधियों को विस्तार से बताया है। यह पुस्तक श्वास की ऊर्जा को समझने और नियंत्रित करने के महत्व को उजागर करती है और योग के अभ्यासियों को प्राणायाम के माध्यम से गहरी शांति और सुसंगति प्राप्त करने में मदद करती है।
    • ‘लाइट ऑन योगा सूत्र’ (1996): इस पुस्तक में अयंगार जी ने पतंजलि के योग सूत्रों की व्याख्या की है। यह पुस्तक योग सूत्रों की गहराई और उनके शास्त्रीय महत्व को सरल और स्पष्ट भाषा में प्रस्तुत करती है। इस कृति के माध्यम से अयंगार जी ने योग के दर्शन और सिद्धांतों को आधुनिक संदर्भ में समझाने का प्रयास किया है।
    • ‘योग: द आर्ट ऑफ़ मास्टरिंग’ (2001): इस पुस्तक में अयंगार जी ने योग के अभ्यास और शिक्षण के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया है। यह पुस्तक योग के शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक लाभों को समझने में सहायक है और योग साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक बन गई है।
    • ‘यथार्थ योग: द सोर्स और योग’ (2008): इस पुस्तक में अयंगार जी ने योग के मूल तत्वों और उनके वास्तविक उपयोग को प्रस्तुत किया है। इसमें योग के शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक लाभों के बारे में गहराई से चर्चा की गई है और इसे एक व्यापक और सहज तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

अयंगार जी की इन पुस्तकों ने योग के प्रति जागरूकता बढ़ाने और इसे एक व्यावहारिक जीवनशैली के रूप में अपनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके द्वारा लिखी गई ये पुस्तकें आज भी योग शिक्षकों और साधकों के लिए एक अमूल्य संदर्भ हैं, जो योग के विभिन्न पहलुओं को समझने और अभ्यास में सहायक हैं।

निधन

बी. के. एस. अयंगार का निधन 20 अगस्त 2014 को हुआ। उनके निधन के बाद भी उनकी शिक्षाएँ और विधियाँ आज भी जीवित हैं और योग साधकों द्वारा अनुसरण की जाती हैं। अयंगार जी ने योग को एक नए रूप में प्रस्तुत किया, जो आज भी लाखों लोगों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है।

समापन

बी. के. एस. अयंगार का जीवन और उनके द्वारा स्थापित ‘अयंगार योग’ ने योग के क्षेत्र में एक अमूल्य योगदान दिया है। उनकी शिक्षाएँ और विधियाँ आज भी योग के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण संदर्भ बिंदु हैं, जो हर व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करती हैं। अयंगार जी के द्वारा किए गए कार्यों और उनके प्रति उनके द्वारा प्रदर्शित समर्पण ने उन्हें योग के क्षेत्र में एक अमर स्थान दिलाया।

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