संचार साथी ऐप: सुरक्षा की आड़ में निजता पर हमला?

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संचार साथी ऐप
संचार साथी ऐप

28 नवंबर 2025 को भारत सरकार ने एक नया आदेश जारी किया। मार्च 2026 से देश में बिकने वाले हर नए स्मार्टफोन में “Sanchar Saathi” ऐप पहले से इंस्टॉल होना अनिवार्य होगा।

सबसे चौंकाने वाली बात — इस ऐप को यूज़र डिलीट भी नहीं कर पाएगा।

संचार साथी ऐप – सरकार का दावा है कि यह कदम साइबर फ्रॉड रोकने और चोरी हुए फोन को ब्लॉक करने के लिए उठाया जा रहा है। लेकिन सवाल बहुत बड़े हैं।

संचार साथी ऐप
संचार साथी ऐप

पहले से मौजूद हैं सारी सुविधाएँ

  • CEIR (Central Equipment Identity Register) पोर्टल पहले से काम कर रहा है
  • खोया हुआ फोन IMEI नंबर से ब्लॉक किया जा सकता है
  • TaRak और Chakshu जैसी सुविधाएँ भी पहले से मौजूद हैं

तो फिर हर फोन में एक ऐसा ऐप जबरन डालने की ज़रूरत क्यों पड़ी जिसे हटाया भी नहीं जा सकता?

ऐप को मिल रही खतरनाक परमिशन

आधिकारिक तौर पर इस ऐप को ये परमिशन चाहिए:

  • कैमरा (IMEI स्कैन करने के लिए)
  • SMS पढ़ने की अनुमति
  • लोकेशन एक्सेस
  • कॉन्टैक्ट लिस्ट तक पहुँच
  • और सबसे ज़रूरी — ये ऐप सिस्टम लेवल पर चलेगा, यानी इसे डिसेबल या अनइंस्टॉल नहीं किया जा सकेगा

यानी आपके फोन में एक ऐसा ऐप हमेशा के लिए रहेगा जिसे आपने चुना तक नहीं, और जिसके पास आपके निजी डेटा तक पहुँच होगी।

कल को क्या हो सकता है?

आज ये ऐप सिर्फ़ “खोया फोन ढूंढने” के लिए है।
कल को इसी ऐप में कोई नया “फीचर” जोड़ दिया जाए तो?

  • माइक्रोफोन एक्सेस?
  • कीबोर्ड लॉगिंग?
  • बैंकिंग ऐप्स का डेटा?
  • आपकी लोकेशन हिस्ट्री का रियल-टाइम ट्रैकिंग?

एक बार जब फोन में अनडिलीटेबल ऐप बैठ जाए, तो उसमें कुछ भी जोड़ा जा सकता है — बिना आपकी सहमति के, बिना आपको बताए।

ये सिर्फ़ ऐप का सवाल नहीं है

ये सवाल है — नागरिक की निजता का, उसकी सहमति का, और उसके फोन पर उसके अधिकार का।

जब Apple का Find My और Google का Find My Device वैकल्पिक है, यूज़र खुद ऑन-ऑफ़ करता है, तो भारत में सरकार क्यों अपने नागरिकों पर एक अनिवार्य, अनडिलीटेबल ऐप थोप रही है?

अंत में एक सवाल

अगर सरकार सच में सिर्फ़ साइबर फ्रॉड रोकना चाहती है, तो वो CEIR को और मज़बूत क्यों नहीं करती? पुलिस को ट्रेनिंग क्यों नहीं देती? जागरूकता अभियान क्यों नहीं चलाती?

फोन में जबरन एक सरकारी ऐप डालना सबसे आसान रास्ता ज़रूर है  लेकिन क्या ये सही रास्ता है?

नागरिक की सहमति के बिना उसका फोन सरकारी निगरानी का ज़रिया बन जाए इसे हम लोकतंत्र कहेंगे या कुछ और?

आप क्या सोचते हैं? कमेंट में ज़रूर बताएँ।

 


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राज पिछले 20 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं। Founder Of Moonfires.com
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