जय गणेश देवा – गणेश आरती – गणेश जी, जिन्हें विनायक, गणपति और बुद्धि के देवता के रूप में भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में सबसे पूजनीय देवताओं में से एक हैं। वे भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। गणेश जी का विशिष्ट रूप है – हाथी का सिर, मोटा पेट, चार हाथ और एक बड़ा दांत।
गणेश जी की विशेषताएं:
- बुद्धि और ज्ञान के देवता: गणेश जी को बुद्धि और ज्ञान का देवता माना जाता है। उन्हें शिक्षा और विद्या का प्रतीक भी माना जाता है।
- विघ्नहर्ता: गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वे सभी बाधाओं को दूर करते हैं।
- शुभ और मंगल: गणेश जी को शुभ और मंगल का प्रतीक माना जाता है। उन्हें अक्सर नई शुरुआत और महत्वपूर्ण अवसरों पर पूजा जाता है।
- समृद्धि और धन: गणेश जी को समृद्धि और धन का देवता भी माना जाता है।
गणेश जी की पूजा:
गणेश जी को पूजा में सबसे पहले पूजा जाता है। उन्हें मोदक, लड्डू, फल और फूल चढ़ाए जाते हैं। गणेश जी की आरती भी गाई जाती है।
गणेश जी के त्यौहार:
गणेश जी का जन्मदिन गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। यह त्यौहार हर साल भाद्रपद महीने में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी 10 दिनों तक मनाया जाता है।
गणेश जी का महत्व:
गणेश जी हिंदू धर्म में सबसे लोकप्रिय देवताओं में से एक हैं। वे बुद्धि, ज्ञान, विघ्नहर्ता, शुभ, मंगल, समृद्धि और धन के प्रतीक हैं। गणेश जी को पूजा में सबसे पहले पूजा जाता है और उन्हें विभिन्न त्योहारों पर भी मनाया जाता है।
जय गणेश देवा – गणेश आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एक दन्त दया वन्त चार भुजा धारी।
माथे पर सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी।।
अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
पान चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
श्री गणेशपञ्चरत्नम् – मुदाकरात्तमोदकं
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सुखकर्ता दुखहर्ता
सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची।
नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची।
सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची।
कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची॥
दर्शनमात्रे मन कामनांपुरती॥ जय देव…
चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा।
हिरेजड़ित मुकुट शोभतो बरा।
रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरीया॥ जय देव…
सरळ सोंड वक्रतुण्ड त्रिनयना।
दास रामाचा वाट पाहे सदना।
संकष्टी पावावें, निर्वाणी रक्षावे, सुरवरवंदना॥ जय देव…।
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