ये मोदी ख़त्म क्यों नहीं हो जाता?

भारतीय राजनीति आज इस स्थिति में पहुंच गई है कि ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी’ नाम ही केंद्र में है और बाकी राजनीति इसके इर्द-गिर्द लिपटी हुई है। इस बात को मोदी के धुर विरोधी भी स्वीकार करेंगे। इसके बारे में यह टिप्पणी..

दुर्भाग्य से विपक्ष के लिए 2014 सिर्फ सत्ता परिवर्तन नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की यात्रा थी। लेकिन इस सफर के 9 साल बाद भी विपक्ष को इसकी भनक तक नहीं लगती। ‘नरेंद्र दामोदरदास मोदी’ आज़ादी के बाद ‘लुटियंस’ दिल्ली के राजनीतिक प्रभाव क्षेत्र से बाहर के पहले प्रधानमंत्री हैं। और इसीलिए वे पारंपरिक तरकीबों का सहारा लिए बिना हमेशा अपने नए तरीके ईजाद करते रहते हैं ।

मोदी की विचार प्रक्रिया को समझने के लिए सबसे पहले उनके व्यक्तित्व को समझना होगा। कई अन्य लोगों की तरह नरेंद्र दामोदरदास मोदी की पारिवारिक पृष्ठभूमि निम्न मध्यम वर्ग थी। उन्होंने बचपन से ही संसाधनों की कमी का अनुभव किया था। देशभक्ति और संगठनात्मक कार्य के बीज उनमें आठ साल की उम्र से ही पड़ गए थे, जब वे पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए। संघ के साथ ये बंधन आज तक जीवित हैं।

नरेंद्र दामोदरदास मोदी
नरेंद्र दामोदरदास मोदी

लक्ष्मणराव इनामदार ने उन्हें बाल स्वयंसेवक के रूप में स्वीकार किया। इनामदार साहब एक तरह से उनके राजनीतिक-सामाजिक गुरु बन गये। बाद में वह वसंत गजेंद्रगडकर और नाथालाल जागड़ा के संपर्क में आये। 80 के दशक में इन तीनों ने गुजरात में संगठन के विकास में बहुमूल्य मार्गदर्शन प्रदान किया।

स्वामी विवेकानन्द के विचारों और कार्यों का युवा नरेन्द्र के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसके बाद 1968 से 1970 तक दो-तीन वर्षों तक वे आध्यात्मिक साधना की इच्छा से विभिन्न स्थानों पर जाते रहे। इसमें बेलूर, राजकोट, सिलीगुड़ी, गुवाहाटी और अल्मोडा स्थित रामकृष्ण मिशन के आश्रम शामिल हैं। वह पूर्णकालिक मिशनरी नहीं बन सके क्योंकि उनके पास आवश्यक शैक्षणिक योग्यता नहीं थी।

वहां से वे फिर वापस आये और फिर संपर्क में आ गये। वडनगर से अहमदाबाद आने के बाद 1971 में 21 साल की उम्र में वह पूर्णकालिक प्रचारक बन गये। उन्होंने शीघ्र ही आने वाले आपातकाल के ख़िलाफ़ भूमिगत रहकर बड़ा संघर्ष किया। उन पर कार्यकर्ताओं को सुरक्षित आश्रय मुहैया कराने और धन इकट्ठा करने की जिम्मेदारी थी।

संघ में रहते हुए उन्होंने आम जनता की समस्याओं और विभिन्न भागों की सामाजिक समस्याओं को समझा। उन्होंने वाजपेयी के नेतृत्व में मुक्ति वाहिनी समर्थन आंदोलन में भाग लिया। इसके लिए वह कुछ समय के लिए तिहाड़ जेल भी गये थे। वे आगे चलकर विभाग प्रचारक के पद तक पहुँचे।

1985 में संघ ने उन्हें नवगठित भारतीय जनता पार्टी को संगठित करने का काम सौंपा और पार्टी में भेजा। दो साल के भीतर उन्होंने पार्टी संगठन को मजबूत करने के पुरजोर प्रयास किये। और इसके परिणामस्वरूप, 1987 के अहमदाबाद नगर निगम चुनावों में भाजपा सत्ता में आई। इस बात और उनके कार्य कौशल को देखते हुए उन्हें गुजरात प्रदेश भाजपा का संगठन सचिव बनाया गया। 1990 में वह पार्टी की राष्ट्रीय चुनाव समिति के सदस्य बने।

90 के दशक में लालकृष्ण आडवाणी की प्रसिद्ध सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा, जिसने पूरे देश में राजनीतिक परिवर्तन के बीज बोये थे, शुरू से लेकर अन्त तक उसकी योजना बनाने का भार मोदी ने उठाया और उसे पूरी तरह सफल बनाया। इस काम से संगठन में वरिष्ठ नेताओं का ध्यान उन पर केन्द्रित हो गया। अगले ही वर्ष उन्होंने मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा की सफल योजना बनाई।

1994 में पार्टी सचिव बनने के बाद उनके द्वारा बनायी गयी रणनीति के बल पर 1995 में गुजरात राज्य में भाजपा की सरकार बनी। परिणामस्वरूप, उन्हें राष्ट्रीय सचिव बनाकर दिल्ली भेज दिया गया। वहां उन्होंने हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की जिम्मेदारी संभाली। 1998 में उन्होंने वाघेला समर्थकों को पीछे छोड़ते हुए केशुभाई समर्थकों को टिकट दिया, जिसके परिणामस्वरूप बहुमत के साथ भाजपा की सरकार बनी। और मोदी राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बन गये।

बाद में 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई की बिगड़ती सेहत और उपचुनावों में बीजेपी की हार के कारण पार्टी नेता नए नेतृत्व की तलाश में थे। उनकी तलाश नरेंद्र दामोदरदास मोदी पर आकर रुकी! इसके अलावा, 2013 तक गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी द्वारा किया गया कार्य और परिवर्तन सबके सामने है। उनके शासनकाल में गुजरात बीजेपी का मजबूत गढ़ बन गया था।

प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने जो काम किया है उसे देश ही नहीं बल्कि दुनिया देख रही है। महज 9 साल में उन्होंने भारतीय मानसिकता में बड़ा बदलाव ला दिया है। उन्होंने भारतीय समाज में एक आशावाद का संचार किया है। स्व-हित उन्मुख विदेश नीति, बुनियादी ढांचे का तेजी से विकास, स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा, प्रमुख आर्थिक सुधार, रक्षा क्षेत्र को मजबूत करना, नए युग के कानून, प्रमुख संवैधानिक सुधार, सामाजिक उत्थान योजनाएं, कल्याणकारी योजनाएं और कई अन्य बिंदु उनके मुख्य आकर्षण थे।

◆ 1971 से 85 तक संघ प्रचारक के रूप में आम लोगों से सीधे संपर्क में – 15 वर्ष ज़मीनी स्तर पर
◆ 1985 से 2000 तक पार्टी संगठन में विभिन्न जिम्मेदारियां निभाते हुए पार्टी विस्तार पर ध्यान, संगठनात्मक कौशल का उपयोग करने का अनुभव – 15 वर्ष
◆ 2001 से 2013 तक मुख्यमंत्री और विधायक के रूप में प्रत्यक्ष चुनावी राजनीति, सत्ता की रणनीति और प्रशासन में अनुभव – लगभग 15 वर्ष

मोदी एकमात्र ऐसे नेता होंगे जिनके पास कुल 45 साल का सामाजिक, राजनीतिक और संगठनात्मक अनुभव है। यह अनुभव और इससे प्राप्त ज्ञान उनकी सबसे बड़ी संपत्ति है। ऐसे नेता के सामने राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वी के रूप में कौन खड़ा हो सकता है? सबसे पहले इस सवाल का जवाब मिलता है – राहुल गांधी, नीतीश कुमार आदि… कैसे बचेंगे??

मोदी के विरोधी बहुत ही अल्पकालिक लाभ को ध्यान में रखकर अपनी राजनीतिक योजनाएँ बनाते हैं। लेकिन अध्ययन के बाद यह देखा जाएगा कि मोदी का हर राजनीतिक कदम भाजपा की दीर्घकालिक प्रगति को ध्यान में रखकर उठाया जाता है।

जैसे मोदी 2047 तक भारत का विजन लेकर राष्ट्र निर्माण कर रहे हैं। इसी तर्ज पर उन्होंने स्वपक्ष के लिए भी नीति बनाई है। इसके तहत राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नेतृत्व में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिल रहा है। ऐसा कहा जाता है कि एक अच्छा नेता वही होता है जो समय रहते अपने उत्तराधिकारियों को तैयार करता है और उन्हें सही अवसर देता है।

मोदी ने पिछले 9 वर्षों में केंद्रीय नेता के रूप में कई नए चेहरों को भी तैयार किया है, उनकी खूबियों को पहचाना है और उन्हें उचित जिम्मेदारियां दी हैं। वे न सिर्फ वहीं रुकते हैं, बल्कि यह भी जांचते रहते हैं कि जिम्मेदारी को उचित न्याय मिलता है या नहीं।
अब तक बीजेपी के परंपरागत वोटरों के अलावा अन्य सामाजिक समूहों के वोटरों को भी अपनी ओर आकर्षित करने की रणनीति पर काम किया जा रहा है। उत्तर में पिछड़े, यादव और आदिवासी समुदायों के साथ-साथ, दक्षिण में ओबीसी, अनुसूचित जनजातियों को समायोजित करने के लिए विभिन्न पार्टी पहल शुरू की गई हैं।

इससे यह विश्वास पैदा हुआ है कि पार्टी संगठन के लिए काम करने वाला एक साधारण कार्यकर्ता भी उच्च पद पा सकता है। पार्टी संगठन को भी निरंतर परिवर्तन और बढ़े हुए लचीलेपन के अनुरूप ढाला गया है। लगातार विभिन्न अभियान एवं कार्यक्रम देकर संगठन को प्रवाहमान बनाये रखा गया है। और सबसे बढ़कर, जनता से संपर्क कम न करने की सावधानी बरती गई है।

इस पृष्ठभूमि में विपक्षी दलों का तुलनात्मक विचार काफी निराशाजनक है। विपक्षी दल अभी भी काफी हद तक एक दशक पहले के नेताओं पर निर्भर है और उसके पास ठोस विपक्षी रणनीति का अभाव है। मुझे याद नहीं है कि विपक्षी दल ने जनता के वास्तविक मुद्दों को लेकर कोई बड़ा आंदोलन किया हो। शासन की कमियों पर बात करने की बजाय विपक्ष मोदी की व्यक्तिगत आलोचना कर सेल्फ गोल में लगा हुआ है।

विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व किसे करना चाहिए, इस पर अभी भी कोई सहमति नहीं है। खासकर ताजा नतीजों के बाद इनके बीच गुटबाजी और भड़कने की आशंका है। आज तक, विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस ने अदालत में जो भी मुद्दा उठाया है, उसमें उसे लगातार हार का सामना करना पड़ा है।

जैसे: राफेल जेट खरीद, अनुच्छेद 370, पेगासस, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट, पीएम केयर्स फंड, ईडी की कार्यकक्षा, कई अन्य मामले..
इसके अतिरिक्त वे बहुसंख्यकों की हिंदू धार्मिक मान्यताओं पर अनावश्यक आलोचना करते रहते हैं, वहीं दूसरी ओर मुसलमानों को खुलेआम और छुपे तौर पर मनाने की कोशिश करते रहते हैं। जो कुछ समझदार लोग इस विसंगति के खिलाफ आवाज उठाते हैं, उन्हें या तो पार्टी के भीतर ही दबा दिया जाता है या पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया जाता है।

ये विभिन्न कारण हैं इस सवाल का जवाब…….मोदी खत्म क्यों नहीं हो जाते??
पुनश्च: 2024 का चुनाव भाजपा के लिए अपनी पिछली सफलता से भी बड़ी सफलता हासिल करने की चुनौती होने जा रहा है, जबकि विपक्षी दलों के लिए यह अस्तित्व के लिए अंतिम और गंभीर लड़ाई होने जा रही है।

लेखिका –  केतकी श्रीकांत प्रभुदेसाई


हा मोदी संपत का नाही..?

 

 

जॉन एफ़. कैनेडी – षड्यंत्र का रहस्य

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