पंडित जवाहरलाल नेहरू की गलतियाँ

पंडित जवाहरलाल नेहरू की गलतियाँ –  भारत के पहले प्रधानमंत्री, एक महान नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखी और देश को एक प्रगतिशील दृष्टिकोण दिया। हालांकि, नेहरू के नेतृत्व में कुछ नीतिगत और रणनीतिक गलतियाँ भी हुईं, जिनका भारत पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इस लेख में, हम उन प्रमुख गलतियों और उनके परिणामों पर चर्चा करेंगे, जो आज भी भारत के विकास में बाधा डाल रही हैं।


विषय विवरण
1. परिचय: पंडित नेहरू का दृष्टिकोण और उनका योगदान
2. नेहरू द्वारा की गई प्रमुख गलतियाँ
3. कश्मीर विवाद और संयुक्त राष्ट्र में हस्तक्षेप
4. चीन नीति और 1962 का युद्ध
5. पंचशील समझौता: एक असफल प्रयास
6. नेहरू की आर्थिक नीतियाँ और समाजवादी दृष्टिकोण
7. औद्योगीकरण और योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था की असफलता
8. शिक्षा और तकनीकी विकास में गलतियां
9. अन्य राजनीतिक मुद्दे और नेहरू की भूमिका
10. विदेश नीति में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की विफलता
11. नेहरू की रक्षा नीति में कमियां
12. संविधान निर्माण में धारणाओं की त्रुटियां
13. धार्मिक राजनीति और विभाजन की छाया
14. भारत के संघीय ढांचे पर नेहरू का प्रभाव
15. निष्कर्ष: नेहरू की गलतियों से सबक

 

पंडित जवाहरलाल नेहरू की गलतियाँ
पंडित जवाहरलाल नेहरू की गलतियाँ

1. परिचय: पंडित नेहरू का दृष्टिकोण और उनका योगदान

पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेताओं में से एक थे, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद देश का नेतृत्व किया। वे भारत के पहले प्रधानमंत्री बने और 1947 से 1964 तक अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्त्वपूर्ण नीतिगत फैसले लिए। नेहरू का सपना था कि भारत एक प्रगतिशील, आधुनिक, और वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला राष्ट्र बने। उन्होंने लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, और समाजवाद की नींव रखी, जो आज भी भारत की राजनीति और नीति-निर्माण में प्रमुख रूप से देखी जाती है।

हालांकि, नेहरू के इन आदर्शों और सपनों को साकार करने की प्रक्रिया में कुछ गंभीर गलतियाँ हुईं, जो उनके समय में महसूस नहीं की गईं, लेकिन दीर्घकाल में उनका भारी मूल्य चुकाना पड़ा। इन नीतिगत और रणनीतिक गलतियों का असर आज भी भारत की आंतरिक और बाहरी राजनीति, आर्थिक विकास, और सामाजिक संरचना पर देखा जा सकता है।

2. नेहरू द्वारा की गई प्रमुख गलतियाँ

पंडित नेहरू द्वारा की गई गलतियाँ कई क्षेत्रों में फैली हुई हैं – कश्मीर नीति से लेकर चीन के साथ संबंध, आर्थिक नीतियों से लेकर रक्षा नीति तक। ये गलतियाँ न केवल उनके समय में, बल्कि आज भी भारत के लिए चुनौती बनी हुई हैं। हम यहां उनके द्वारा की गई कुछ प्रमुख गलतियों पर गहराई से चर्चा करेंगे।

3. कश्मीर विवाद और संयुक्त राष्ट्र में हस्तक्षेप

कश्मीर भारत-पाकिस्तान के बीच एक सदियों पुराना विवाद रहा है, जिसकी जड़ें नेहरू के प्रधानमंत्री काल में ही हैं। 1947 में भारत के विभाजन के बाद, कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय करने का निर्णय लिया। इसके बाद पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, जिसे “कबाइलियों का आक्रमण” कहा जाता है। नेहरू ने स्थिति को शांतिपूर्वक सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र का दरवाजा खटखटाया, जबकि सरदार वल्लभभाई पटेल और अन्य नेताओं का मानना था कि इस विवाद को सैन्य रूप से हल किया जा सकता था।

नेहरू का यह निर्णय भारत के लिए दीर्घकालिक रूप से महंगा साबित हुआ। संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर मुद्दे पर त्वरित समाधान नहीं दिया और इससे कश्मीर में संघर्ष जारी रहा। इसके परिणामस्वरूप, कश्मीर आज भी भारत और पाकिस्तान के बीच एक विवादित क्षेत्र बना हुआ है, और यह समस्या पिछले 70 वर्षों से भारतीय कूटनीति और सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती है।

4. चीन नीति और 1962 का युद्ध

नेहरू की दूसरी बड़ी भूल उनकी चीन नीति थी। उन्होंने चीन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने के प्रयास में पंचशील सिद्धांतों को अपनाया और हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा दिया। नेहरू का मानना था कि दोनों एशियाई शक्तियां साथ आकर विश्व मंच पर पश्चिमी प्रभाव का मुकाबला कर सकती हैं। लेकिन नेहरू की इस दृष्टिकोण की वास्तविकता तब सामने आई जब 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया और भारत को एक अपमानजनक पराजय का सामना करना पड़ा।

नेहरू ने चीन की आक्रमणकारी नीतियों और विस्तारवादी दृष्टिकोण को नजरअंदाज किया, जिसके कारण भारत के सुरक्षा तंत्र को गंभीर नुकसान हुआ। 1962 के युद्ध ने न केवल भारत की सुरक्षा को चुनौती दी, बल्कि नेहरू के नेतृत्व को भी सवालों के घेरे में ला दिया।

5. पंचशील समझौता: एक असफल प्रयास

1954 में नेहरू ने चीन के साथ पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो शांति और परस्पर सम्मान के सिद्धांतों पर आधारित था। नेहरू का उद्देश्य चीन के साथ स्थायी मित्रता कायम करना था। हालांकि, चीन ने इस समझौते का उल्लंघन करते हुए तिब्बत पर आक्रमण किया और फिर 1962 में भारत पर हमला कर दिया। पंचशील समझौता ने भारत की विदेश नीति में एक बड़ी गलती के रूप में अपनी जगह बना ली, जिससे भारत को नुकसान उठाना पड़ा।

6. नेहरू की आर्थिक नीतियाँ और समाजवादी दृष्टिकोण

नेहरू ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए समाजवादी मॉडल को अपनाया। उन्होंने राज्य द्वारा नियंत्रित औद्योगीकरण और योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था पर जोर दिया। इसके परिणामस्वरूप, भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना हुई, लेकिन इनकी अक्षम प्रबंधन प्रणाली के कारण ये उपक्रम कुशलता से कार्य नहीं कर सके।

नेहरू की समाजवादी नीतियों के कारण भारत में निजी उद्यमों और उद्योगों को पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं मिला। इसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास की गति धीमी रही और देश लंबे समय तक गरीबी, बेरोजगारी, और औद्योगिक पिछड़ेपन से जूझता रहा।

7. औद्योगीकरण और योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था की असफलता

नेहरू की योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था में भारी औद्योगीकरण पर जोर दिया गया, लेकिन इसमें कई कमियां रहीं। भारी उद्योगों पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करने के कारण छोटे और मध्यम उद्योगों की उपेक्षा हुई। इसके अलावा, नेहरू ने कृषि क्षेत्र की अनदेखी की, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण विकास की गति धीमी रही और कृषि क्षेत्र में उत्पादकता कम रही। इसका असर भारत की आर्थिक प्रगति पर पड़ा और देश लंबे समय तक खाद्य संकट का सामना करता रहा।

8. शिक्षा और तकनीकी विकास में गलतियां

नेहरू ने तकनीकी शिक्षा और वैज्ञानिक विकास पर जोर दिया, जिसके परिणामस्वरूप आईआईटी, आईआईएम, और कई अन्य संस्थानों की स्थापना हुई। लेकिन आम जनता तक शिक्षा का विस्तार करने में वे असफल रहे। उनकी शिक्षा नीति मुख्यतः उच्च शिक्षा पर केंद्रित रही, जबकि प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की उपेक्षा हुई। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत में साक्षरता दर धीमी रही और देश की बड़ी आबादी शिक्षा से वंचित रही।

9. अन्य राजनीतिक मुद्दे और नेहरू की भूमिका

नेहरू के समय में भारत में कई राजनीतिक मुद्दे उभरे, जिनमें से कई का समाधान करने में नेहरू की भूमिका विवादास्पद रही। उदाहरण के लिए, हिंदी भाषा को लेकर विवाद, राज्यों के पुनर्गठन का मुद्दा, और जातीयता और क्षेत्रीयता के आधार पर राजनीति का उभार। नेहरू ने इन समस्याओं का तात्कालिक समाधान निकालने का प्रयास किया, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टिकोण की कमी रही।

10. विदेश नीति में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की विफलता

पंडित नेहरू ने शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement) की शुरुआत की थी। उनका मानना था कि भारत जैसे नवोदित राष्ट्र को अमेरिका या सोवियत संघ के किसी भी धड़े में शामिल होने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि उसे तटस्थ रहकर स्वतंत्र नीति का पालन करना चाहिए। इस नीति के तहत भारत ने न तो पश्चिमी पूंजीवादी देशों के साथ और न ही साम्यवादी सोवियत संघ के साथ सीधा गठजोड़ किया।

हालांकि, गुटनिरपेक्ष नीति के कई लाभ थे, लेकिन इसका एक बड़ा नकारात्मक पहलू यह था कि भारत ने किसी भी बड़े वैश्विक गठबंधन का हिस्सा बनने का मौका गंवा दिया, जिससे उसकी सुरक्षा और रणनीतिक लाभ सीमित हो गए। इस तटस्थता के कारण भारत को कई बार कूटनीतिक मंच पर अकेला भी खड़ा होना पड़ा, खासकर 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के समय, जब पश्चिमी देशों या सोवियत संघ से पर्याप्त सहायता प्राप्त नहीं हो सकी। इसके अलावा, गुटनिरपेक्ष नीति ने भारत की सैन्य और आर्थिक क्षमता को भी सीमित किया, क्योंकि इसे वैश्विक बाजार और अंतरराष्ट्रीय संबंधों से पर्याप्त समर्थन नहीं मिला।

11. नेहरू की रक्षा नीति में कमियां

पंडित नेहरू की रक्षा नीति में कुछ महत्वपूर्ण कमियां थीं, जो बाद में भारत के लिए गंभीर परिणाम लेकर आईं। उन्होंने भारतीय सेना और रक्षा ढांचे को वह महत्व नहीं दिया, जो उन्हें देना चाहिए था। उनका मानना था कि भारत को अपनी सुरक्षा के लिए बड़े सैन्य बल की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे शांति और कूटनीति में विश्वास रखते थे। इसका नतीजा यह हुआ कि भारत की सैन्य तैयारी कमजोर रही, और जब 1962 में चीन के साथ युद्ध हुआ, तो भारतीय सेना को पर्याप्त हथियारों और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ा।

नेहरू ने भारत की सीमाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीरता से विचार नहीं किया, खासकर चीन और पाकिस्तान के साथ। उनकी रक्षा नीति की इस कमजोरी का खामियाजा भारत को 1962 के युद्ध में हार और बाद में 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारी क्षति के रूप में भुगतना पड़ा।

12. संविधान निर्माण में धारणाओं की त्रुटियां

भारत का संविधान, जो विश्व के सबसे विस्तृत और विस्तारित संविधानों में से एक है, नेहरू और उनके सहयोगियों की दूरदर्शिता का परिणाम था। हालांकि, संविधान निर्माण में कुछ ऐसी धारणाएं थीं, जो दीर्घकाल में भारत के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुईं। नेहरू के नेतृत्व में संविधान ने कई ऐसे प्रावधानों को शामिल किया, जिनसे बाद में विवाद उत्पन्न हुए। उदाहरण के लिए, अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35A, जो जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करते थे, दीर्घकाल में भारत के लिए सुरक्षा और कूटनीतिक चुनौतियों का कारण बने।

इसके अलावा, संविधान में आर्थिक और सामाजिक न्याय की धारणाओं को शामिल करते हुए, नेहरू ने समाजवाद की ओर झुकाव दिखाया, जिसने देश के निजी क्षेत्र के विकास और उद्यमशीलता को सीमित कर दिया। इस कारण भारत की आर्थिक वृद्धि धीमी रही और यह समस्या कई दशकों तक बनी रही।

13. धार्मिक राजनीति और विभाजन की छाया

भारत के विभाजन ने धार्मिक तनाव और सांप्रदायिकता की लपटों को प्रज्वलित कर दिया था। नेहरू ने एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने यह नहीं समझा कि धार्मिक और सांप्रदायिक विभाजन भारतीय राजनीति में कितनी गहराई से जड़ें जमाए हुए हैं।

नेहरू के धर्मनिरपेक्षता के दृष्टिकोण ने कई बार हिंदू-मुस्लिम संबंधों को संभालने में जटिलताएं पैदा कीं। उन्होंने मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के हितों की रक्षा की, लेकिन इससे कई बार हिंदू समुदाय के भीतर असंतोष पैदा हुआ। धर्मनिरपेक्षता के आदर्श के बावजूद, सांप्रदायिकता भारतीय राजनीति का एक अहम हिस्सा बनी रही और आज भी यह भारतीय राजनीति के लिए एक प्रमुख चुनौती है।

14. भारत के संघीय ढांचे पर नेहरू का प्रभाव

नेहरू ने भारत के संघीय ढांचे को मजबूत करने का प्रयास किया, लेकिन उन्होंने केंद्र सरकार को अत्यधिक शक्तिशाली बनाने की दिशा में कदम उठाए। उनका मानना था कि एक मजबूत केंद्र सरकार ही भारत को एकजुट रख सकती है। इसके परिणामस्वरूप, राज्य सरकारों को स्वायत्तता में कमी का सामना करना पड़ा और केंद्र और राज्यों के बीच अक्सर टकराव की स्थिति उत्पन्न हुई।

नेहरू के समय में भारतीय संघीय ढांचे में असंतुलन देखा गया, जिसका दीर्घकालिक परिणाम यह हुआ कि राज्यों और केंद्र के बीच तनाव बढ़ता गया। कई राज्यों में क्षेत्रीय असंतोष और अलगाववादी आंदोलन उभरे, जो आज भी भारत की आंतरिक सुरक्षा और एकता के लिए चुनौती बने हुए हैं।

15. निष्कर्ष: नेहरू की गलतियों से सबक

पंडित जवाहरलाल नेहरू एक महान नेता और दूरदर्शी व्यक्ति थे, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद भारत को मार्गदर्शन दिया और आधुनिक भारत की नींव रखी। लेकिन उनके कार्यकाल में की गई नीतिगत और रणनीतिक गलतियाँ भी अनदेखी नहीं की जा सकतीं। कश्मीर विवाद, चीन के साथ संबंध, समाजवादी आर्थिक नीतियाँ, और रक्षा क्षेत्र में कमजोरियां, ये सभी उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े करते हैं।

नेहरू की गलतियों से भारत ने कई महत्त्वपूर्ण सबक सीखे हैं। आज के समय में भारत ने अपनी रक्षा प्रणाली को मजबूत किया है, आर्थिक नीतियों में उदारता लाई है, और वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को बेहतर किया है। हालांकि, इन गलतियों का दीर्घकालिक प्रभाव अब भी भारत की राजनीति, सुरक्षा, और विकास पर दिखाई देता है। नेहरू की विरासत का आकलन करते समय हमें उनकी उपलब्धियों के साथ-साथ उनकी गलतियों पर भी ध्यान देना चाहिए, ताकि भविष्य की नीतियों को बेहतर ढंग से तैयार किया जा सके और उनसे सीखे गए सबक से आगे बढ़ा जा सके।

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