शिव मानस पूजा स्तोत्रम्

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शिव मानस पूजा स्तोत्रम्
शिव मानस पूजा स्तोत्रम्

शिव मानस पूजा स्तोत्रम्

रचनाकार: आदि शंकराचार्य

(Shiv Manas Puja Stotram by Adi Shankaracharya)


प्रस्तावना

शिव मानस पूजा स्तोत्रम् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक भक्ति पूर्ण स्तोत्र है, जिसमें भक्त अपनी मानसिक पूजा के माध्यम से भगवान शिव को अर्पित करता है। यह स्तोत्र भक्ति, समर्पण और आत्मिक शुद्धि का प्रतीक है।

रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं
नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनम्।

जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥1॥

सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसं
भक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम्।

शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥2॥

छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं
वीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा।

साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मया
सङ्कल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥3॥

आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः।

सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥4॥

करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा।
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।

विदितमविदितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व।
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेवशम्भो॥5॥

॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचिता शिवमानसपूजा समाप्ता ॥

 

शिव मानस पूजा स्तोत्रम्
शिव मानस पूजा स्तोत्रम्

संस्कृत पाठ, लिप्यंतरण और अर्थ

श्लोक १

संस्कृत:
रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं
नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनम्।
जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥ १ ॥

लिप्यंतरण (Transliteration):
Ratnaih kalpitamāsanam himajalaih snānam cha divyāmbaram
Nānāratnavibhūṣitam mrigamadāmodāṅkitam chandanam.
Jātīchampakabilvapatrarachitam puṣpam cha dhūpam tathā
Dīpam deva dayānidhe paśupate hṛtkalpitam gṛihyatām ॥ 1 ॥

अर्थ (Meaning):
हे शिव, मैं मन से आपके लिए रत्नजड़ित सिंहासन, हिमजल से स्नान, दिव्य वस्त्र, चंदन, फूल, धूप, दीप आदि अर्पित करता हूँ। कृपया इसे स्वीकार करें।

श्लोक २

संस्कृत:
सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसं
भक्ष्यं पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम्।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं
ताम्बूलं मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥ २ ॥

लिप्यंतरण (Transliteration):
Sauvarṇe navaratnakhaṇḍarachite pātre ghṛitam pāyasam
Bhakṣyam pañchavidham payodadhiyutam rambhāphalam pānakam.
Śākānāmayutam jalam ruchikaram karpūrakaṇḍojjvalam
Tāmbūlam manasā mayā virachitam bhaktyā prabho svīkuru ॥ 2 ॥

अर्थ (Meaning):
मैं स्वर्ण के पात्र में घी, पायस, पंच प्रकार के भक्ष्य, फल, पानक, शाक, जल और ताम्बूल मन से अर्पित करता हूँ। इसे भक्ति सहित ग्रहण करें।

श्लोक ३

संस्कृत:
छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलं
वीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा।
साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मया
सङ्कल्पेन समर्पितं तव विभो पूजां गृहाण प्रभो॥ ३ ॥

लिप्यंतरण (Transliteration):
Chhatram chāmarayoryugam vyajanakam chādarśakam nirmalam
Vīṇābherimṛidaṅgakāhalakalā gītam cha nṛityam tathā.
Sāṣṭāṅgam praṇatih stutirbahuvidhā hyetatsamastam mayā
Saṅkalpena samarpitam tava vibho pūjām gṛihāṇa prabho ॥ 3 ॥

अर्थ (Meaning):
मैं छत्र, चामर, पंखा, दर्पण, वीणा, भेरी, मृदंग, नृत्य, गीत, साष्टांग प्रणाम और विविध स्तुतियाँ मन से अर्पित करता हूँ। हे प्रभु, मेरी पूजा स्वीकार करें।

श्लोक ४

संस्कृत:
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः।
सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वं गिरः
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥ ४ ॥

लिप्यंतरण (Transliteration):
Ātmā tvam girijā matih sahacharāh prāṇāh śarīram gṛiham
Pūjā te viṣayopabhogarachanā nidrā samādhisthitih.
Sañchārah padayoh pradakṣiṇavidhih stotrāṇi sarvam girah
Yadyatkarma karomi tattadakhilam śambho tavārādhanam ॥ 4 ॥

अर्थ (Meaning):
आप मेरी आत्मा, पार्वती मेरी बुद्धि, प्राण मेरे सहचर, शरीर मेरा घर, और मेरे सभी कर्म आपकी पूजा हैं। मेरा प्रत्येक कार्य आपके लिए अर्पित है।

श्लोक ५

संस्कृत:
करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो॥ ५ ॥

लिप्यंतरण (Transliteration):
Karacharaṇakṛitam vākkāyajam karmajam vā
Śravaṇanayanajam vā mānasam vāparādham.
Vihitamavihitam vā sarvametatkṣamasva
Jaya jaya karuṇābdhe śrīmahādeva śambho ॥ 5 ॥

अर्थ (Meaning):
मेरे हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कर्म, श्रवण, नेत्र या मन से हुए सभी अपराधों को क्षमा करें। हे करुणा के सागर, महादेव, आपकी जय हो!


महत्व

यह स्तोत्र भक्ति और मानसिक समर्पण का प्रतीक है, जिसमें भक्त बिना भौतिक साधनों के केवल मन से शिव की पूजा करता है। यह आत्मिक शुद्धि और समर्पण का मार्ग दर्शाता है।

 


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राज पिछले 20 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं। Founder Of Moonfires.com
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