श्री हनुमान चालीसा

श्री हनुमान चालीसा का पाठ कैसे करें?

श्री हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए आप घी का दीपक जलाकर पंचोपचार या षोडशोपचार से पूजन करके नित्य हनुमान चालीसा का पाठ सात या सौ बार कर सकते हैं। पाठ प्रारम्भ करने से पूर्व आप हनुमान जी को एक लाल आसन बिछाकर उस पर आदर सहित पाठ सुनने के लिए बुला सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें आदर सहित पाठ समाप्ति के बाद हनुमान जी को विदा करना न भूलें। नित्य चालीसा को सात बार पाठ करने से हनुमान जी की कृपा मिलती है।

दोहा :

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।।

चौपाई :

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥१॥

रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥

महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

कंचन बरन विराज सुवेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥४॥

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै।
कॉंधे मूँज जनेऊ साजै॥५॥

शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग बंदन॥६॥

विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥७॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥८॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे॥१०॥

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये॥११॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥१२॥

सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥१३॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भये सब जग जाना॥१७॥

जुग सहस्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥१८॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥१९॥

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥२२॥

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै॥२३॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥

संकट ते हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥२६॥

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥२८॥

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकन्दन राम दुलारे॥३०॥

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
अस वर दीन जानकी माता॥३१॥

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥३४॥

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥३५॥

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥३७॥

जो शत बार पाठ कर कोई।
छूटहिं बंदि महासुख होई॥३८॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥३९॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥४०॥

हनुमान चालीसा
हनुमान चालीसा

दोहा :

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
रामलखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

श्री हनुमान चालीसा का अर्थ

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।

अर्थ:- मैं अपने श्री गुरु जी के चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी मुकुट को स्वच्छ करके श्री रघुवर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ काम और मोक्ष को देने वाला है।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।।

अर्थ:- हे पवनपुत्र! मैं आपका उपासक हूँ, आप तो यह भी जानते हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शक्ति, सद्बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुःखों और चिंताओं का अंत कर दो।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥१॥

अर्थ:- हे हनुमान जी, हे कपीश आप ज्ञान व अनन्त गुणों के सागर हैं। आप तीनों लोकों को प्रकाशमान करते हो, आपकी जय हो

रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥

अर्थ:- आप राम के दूत (प्रतिनिधी) व असीम एवं अद्वितीय बल, शक्ति के भण्डार (धाम) हैं। आप अंजनिपुत्र व पवनपुत्र नाम से विख्यात हैं।

महावीर विक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥

अर्थ:- हे महावीर आप अत्यन्त वीर, पराक्रमी हैं । आपके अंग वज्र के समान बलिष्ठ हैं। आप पाप बुद्धि को दूर करने वाले व सद्बुद्धि का साथ देते हैं।

कंचन बरन विराज सुवेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥४॥

अर्थ:- आपका रंग स्वर्ण के समान है, सुन्दर वेशभूषा धारण कर शोभामान होते हैं, आप कानों में कुण्डल धारण करते हैं आपके केश, घुंघराले व अति सुन्दर हैं।

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै।
कॉंधे मूँज जनेऊ साजै॥५॥

अर्थ:- आपके एक हाथ में वज्र (गदा) दूसरे में ध्वजा शोभा पाती है, आपके कन्धे पर यज्ञोपवीत शोभायमान रहता है

शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग बंदन॥६॥

अर्थ:- आप शंकर के पुत्र हैं तथा केसरी जी को आनन्द देने वाले हैं। आपकी यश, प्रतिष्ठा महान है। सारा संसार आपकी पूजा करता है।

विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥७॥

अर्थ:- आप सभी विद्याओं ( युद्ध, योग, संस्कृत) के पूर्ण अनुभवी हैं व राम जी के सभी कार्य सम्पन्न करने को व्याकुल रहते हैं।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥८॥

अर्थ:- आप राम जी की कथा सुनने के रसिया हैं। आपके हृदय में राम, लक्ष्मण जी व सीता माता सदा वास करते हैं।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥

अर्थ:- आप योग-बल से छोटा रूप बनाकर सीता जी के आगे प्रकट हुये व विशाल एवं भंयकर रूप धारण कर लंका को जला डाला।

भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे॥१०॥

अर्थ:- राम-रावण युद्ध में आपने विशाल, भंयकर रूप धारण कर राक्षसों का संहार किया, रामचन्द्र जी के अनेक कार्य सम्पन्न किये।

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये॥११॥

अर्थ:- आपने हिमालय से संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जीवित किया, प्रभु राम ने प्रसन्न हो भाई की भाँति आपको छाती से लगा लिया।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥१२॥

अर्थ:- प्रभु राम जी ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा हनुमान! “तुम भरत के समान ही मेरे प्रिय भाई हो”

सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥१३॥

अर्थ:- सहस्त्रों मुख तुम्हारा यशोगान कर रहे हैं, ये कह कर लक्ष्मीपति भगवान ने पुनः हनुमान जी को गले लगा लिया।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥

अर्थ:- यह सारे ऋषि मुनि, देवी-देवता एवं ब्रह्मा जी, सरस्वती, नारद सभी आपके साथ हैं।

यम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥

अर्थ:- यमराज, कुबेर जी और अन्य ज्ञानी जन सब ही आपका गुण गान करते हैं। बोलो पवनपुत्र हनुमान जी की जय।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥

अर्थ:- आपने सुग्रीवजी को श्री राम से मिलवाकर उन पर महान् उपकार किया, राम मिलन से ही उन्हें किष्किन्धा का राज्य प्राप्त हुआ।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भये सब जग जाना॥१७॥

अर्थ:- आपका परामर्श मानकर विभीषण प्रभु राम की शरण में गये, जिसके कारण वे लंका के राजा बने, ये बात सारा संसार जानता है।

जुग सहस्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥१८॥

अर्थ:- आपने बाल्यकाल में हजारों योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को एक मधुर (मीठा) फल जान मुँह में रख लिया था।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥१९॥

अर्थ:- वह मुद्रिका जो समस्त कार्यों को पूर्ण कराने वाली तथा सब विघ्न बाधाओं को हरने वाली थी उसे मुंह में रख आपने विशाल सागर को पार किया, इसमें अचरज नहीं है।

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥

अर्थ:- संसार में लोगों के जितने भी कठिन कार्य हैं वे आपकी कृपा से सरल हो जाते हैं।

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥

अर्थ:- प्रभु रामके द्वार (बैकुण्ठ) के आप रखवाले हैं आपकी आज्ञा के बिना कोई भी उस धाम में प्रवेश नहीं कर सकता।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥२२॥

अर्थ:- जो आपकी शरण में आता है वह सब सुखों को प्राप्त करता है और जब आप स्वयं उसके रक्षक हैं तो उसे फिर किस बात का डर है।

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै॥२३॥

अर्थ:- आपका तेज अत्यन्त प्रचण्ड है, उसे स्वयं आप ही सम्भाल सकते हैं। आपकी एक हुँकार से ही तीनों लोक कांप उठते हैं।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥

अर्थ:- यदि किसी को भूत-पिशाच दिखायी देते हों तो हे महावीर जी आपका नाम लेने भर मात्र से वह तुरन्त भाग जाते हैं। (आपका नाम राम बाण) की भाँति है।

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥

अर्थ:- आपके नाम का निरन्तर जाप करने से सब रोग व पीड़ायें (आदि भौतिक, आदि दैविक तथा आध्यात्मिक) ये तीनों ताप भी दूर हो जाते हैं।

संकट ते हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥२६॥

अर्थ:- जो व्यक्ति मन, वाणी व शरीर से हनुमान जी का स्मरण व पूजा करते हैं, हनुमान जी उनके सब संकट दूर कर देते हैं।

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥

अर्थ:- तपस्वी राम सारे संसार के राजा (स्वामी) हैं। फिर भी हनुमान जी आपने उनके सारे कठिन कार्य सम्पन्न किये।

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥२८॥

अर्थ:- जो कोई अपनी सांसारिक इच्छा लेकर आता है, उसे तो आप पूरा करते ही हैं। पर साथ ही राम भक्ति का मार्ग दिखाते हैं जिसरे, मुनष्य जीवन का अमूल्य फल ( मोक्ष) प्राप्त करता है।

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥

अर्थ:- आपका प्रभाव चारों युगों (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर तथा कलियुग) में फैला है वह प्रताप जगत को प्रकाशमान करने के लिये प्रसिद्ध है।

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकन्दन राम दुलारे॥३०॥

अर्थ:- आप सज्जनों, प्रभु भक्तों की रक्षा करने वाले व दुष्टों का नाश करने वाले हैं। प्रभु राम को पुत्र के समान प्रिय हैं।

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता।
अस वर दीन जानकी माता॥३१॥

अर्थ:- आपको माता सीता की ओर से आठ सिद्धियों और नौ निधियों का जो वरदान मिला है, उनकी शक्ति से आप किसी को भी सब प्रकार की सम्पत्ति दे सकते हैं।

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥

अर्थ:- आपके पास राम भक्ति रूपी रसायन है, जो किसी को भी सर्वश्रेष्ठ बना सकता है। आप रघुपति दास के रूप में लोगों को राम भक्त बनाते हैं।

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥

अर्थ:- आपके लिये किये गये सभी भजन श्री राम तक पहुंचते हैं। जिससे जन्म-जन्मान्तर के दुःख दूर हो जाते हैं।

अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥३४॥

अर्थ:- आपके भजनों की कृपा से ही प्राणी अन्त समय श्री राम के धाम को प्राप्त करते हैं और यदि मृत्युलोक में जन्म लेंगे, तो भक्ति करेंगे व हरि भक्त कहलायेंगे।

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥३५॥

अर्थ:- राम भक्ति में (कृष्ण, विष्णु, शिव) सब एक हैं। हे हनुमान जी, जो भक्त सच्चे मन से आपकी सेवा करते हैं! उन्हें सब सुख प्राप्त होते हैं।

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥

अर्थ:- महावीर जी की उपासना भक्ति से मनुष्य के सारे संकट, कष्ट, दुःख मिट जाते हैं। वह से जन्म-मरण (भव) की पीड़ा मुक्त हो जाता है।

जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥३७॥

अर्थ:- हे हनुमान जी, हे गोस्वामी जी ( जिसने दसों इन्द्रियों को वश में किया हो) आपकी जय हो। गुरु की भांति मुझ पर कृपा करें।

जो शत बार पाठ कर कोई।
छूटहिं बंदि महासुख होई॥३८॥

अर्थ:- जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का शत (निरन्तर ) पाठ करता है वह जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो शाश्वत् आनन्द प्राप्त करता है।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥३९॥

अर्थ:- जो व्यक्ति हनुमान चालीसा को पढ़ता है उसकी सब मनोकामनायें सफल होती हैं इस बात की साक्षी स्वयं भगवान शंकर ने दी है।

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥४०॥

अर्थ:- तुलसीदास जी कहते हैं कि हे प्रभु आप राम के दास है और मैं आपका दास हूँ। अतः हे श्री हनुमान जी आप मेरे हृदय में विराजें।

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
रामलखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

अर्थ:- हे पवन पुत्र! संकटों, दुखों कष्टों को दूर करने वाले एवं परम कल्याण की साक्षात मूर्ति और आप जो देवताओं के राजा हैं । राम, लक्ष्मण, सीता जी के साथ मेरे हृदय में वास कीजिए।

 

 

रामचरितमानस – मंगल भवन अमंगल हारी – अर्थ सहित

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