जैन तीर्थ – अयोध्या

Krit Jain
जैन तीर्थ - अयोध्या

जैन तीर्थ – अयोध्या भारत की अति प्राचीन नगरियों में एक है। जैन परम्परा के अनुसार यहाँ 7 कुलकरों तथा 5 तीर्थंकरों का जन्म हुआ। ऐसा कहा जाता है कि इन कुलकरों द्वारा सांसारिक नियमों का निर्माण किया गया। इनके नाम विमलवाहन, कक्खुम, जसम, अभिचंद, पसेणीय, मरूदेव और नाभि मिलते हैं। जिन तीर्थंकरों का यहाँ जन्म हुआ उनके नाम ऋषभनाथ, अजितनाथ, अभिनन्दन, सुमतिनाथ और अजिलनाथ हैं। इसलिए इस नगरी को जैन तीर्थ के रूप में मान्यता मिली।

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की पावन जन्मस्थली के रूप में विश्व विख्यत धार्मिक नगरी जैन तीर्थ – अयोध्या हिन्दू धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों के गुरुओं और प्रवर्तकों की ज्ञान स्थली तप स्थली के रूप में भी जानी जाती है , जैन समुदाय के लोगों के लिए यह तीर्थ नगरी विशेष स्थान रखती है और वर्ष भर यहाँ जैन समुदाय के लोगों का आवागमन बना रहता है।

मार्ग

तीर्थंकर ऋषभदेव जी कि जन्मभूमि अयोध्या तीर्थ (शाश्वत तीर्थ एवं वर्तमानकालीन पाँच तीर्थंकरों की जन्मभूमि)- अयोध्या फैजाबाद से ५ किमी. है। यह दिल्ली-लखनऊ-मुगलसराय रेलवे लाइन पर उत्तर रेलवे का स्टेशन है। सड़क मार्ग से लखनऊ से १३९ किमी. और इलाहाबाद से १६० किमी. है। मुगलसराय, वाराणसी और लखनऊ व दिल्ली से सीधी गाड़ियाँ आती हैं। जैन मान्यता के अनुसार अयोध्या शाश्वत नगरी है।

भगवान ऋषभदेव

प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के गर्भ और जन्मकल्याणक यहीं हुए। चार तीर्र्थंकरों-दूसरे अजितनाथ, चौथे अभिनंदननाथ, पाँचवें सुमतिनाथ और चौदहवें अनंतनाथ के गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान कल्याणक यहीं पर हुए। इस प्रकार १८ कल्याणक सम्पन्न होने का सौभाग्य इस नगरी को प्राप्त हैं। इसी नगरी में भगवान ऋषभदेव ने छ: कर्मों (असि, मसि, कृषि, विद्या, शिल्प और वाणिज्य) का ज्ञान समाज को दिया। अपनी पुत्री ब्राह्मी और सुंदरी को लिपि और अंक विद्या का ज्ञान दिया। ऋषभदेव का प्राचीन मंदिर मखदूम शाह जूरन गोरी ने तोड़ा था। जैन तीर्थ – अयोध्या भूमि का महत्व जैन धर्मों लिए के जननी समान है।

ऋषभदेव - जैन तीर्थ - अयोध्या
जैन तीर्थ – अयोध्या

भरत जी को बहत्तर कलाओं का शिक्षण दिया, सामाजिक व्यवस्था की स्थापना की, राजनैतिक सुव्यवस्था की दृष्टि से पुर, ग्राम, खेट, नगर आदि की व्यवस्था की। समूचे राष्ट्र को उन्होंने ५२ जनपदों में बांटा था। भगवान के ज्येष्ठ पुत्र भरत ने यहीं से सम्पूर्ण भरत-खंड पर विजय प्राप्त कर प्रथम चक्रवर्ती सम्राट् होने का गौरव प्राप्त किया। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचन्द्र के कारण अयोध्या को विशेष गौरव मिला। श्रीराम ने संसार में लोकमान्य मर्यादाओं की रक्षा, पितृभक्ति, बंधुत्व, जन सामान्य के महत्व आदि आदर्श उपस्थित किए। अयोध्या से अनेकानेक महत्वपूर्ण घटनाओं का संबंध है लोकमानस पर उनकी गहरी छाप है।

अयोध्या नगरी मेें इस समय नाभिराजा का मंदिर महल, पाश्र्वनाथ वाटिका, सीताकुण्ड, सहस्रधरा, गोपदराई आदि अनेक लौकिक तीर्थ विद्यमान हैं। जैन मान्यतानुसार अयोध्या आदितीर्थ एवं आदिनगर हैै। जैन साहित्य में इस नगरी के कई नाम मिलते हैं यथा-विनीता, साकेत, इक्ष्वाकुभूमि, कोशल, अवज्झा आदि। ये नाम विभिन्न कारणों से रखे गए प्रतीत होते हैं। जैन ग्रन्थों के अनुसार यहाँ के अनुसार यहाँ के निवासी अत्यन्त विनम्र स्वभाव के थे, अतः इस नगरी का नाम विनीता पड़ा। इक्ष्वाकुवंशीय राजाओं की राजधानी होने के कारण इसका नाम इक्ष्वाकुभूमि पड़ा।


१. जैन तीर्थ – अयोध्या में कितने जैन तीर्थंकरों का जन्म हुआ है?

जैन धर्म पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव जो 24 तीर्थंकर है. उसमें से 5 तीर्थंकर की जन्मस्थली अयोध्या है.  हजारो वर्ष पूर्व भगवान ऋषभदेव का जन्म यहीं पर हुआ था.

२. उत्तर प्रदेश में कुल कितने तीर्थंकर जन्मे थे?


24
 तीर्थंकरों की कथा-चित्र ये सब तीर्थंकर क्षत्रिय कुल में उत्पन्न माने जाते हैं। इनमें मुनिस्व्रुात और नेमि ने हरिवंश में तथा बाकी २२ तीर्थंकरों ने इक्ष्वाकुवंश में जन्म धारण किया।

३. जैन धर्म में कितने ग्रंथ है? 


जैन धर्म
 में वर्तमान में 45 आगम शास्त्र है जो भगवान महावीर की परम्परा में हुए साधु भगवन्तों ने लिपि बद्ध लिए थे। जैन धर्म के सभी संप्रदायों को मान्य ग्रन्थ तत्वार्थ सूत्र है।

४. जैन धर्म के प्रमुख 3 नियम क्या है?

त्रिरत्न – जैन धर्म के प्रमुख सिद्धांत त्रिरत्न के नाम से जाने जाते हैं । त्रिरत्न के अंतर्गत सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन तथा सम्यक कर्म को गिना जाता है। सम्यक ज्ञान का अर्थ है जैन धर्म और मुक्ति के विषय में संपूर्ण और सच्चा ज्ञान। सम्यक दर्शन का अर्थ होता है तीर्थंकरों में पूर्ण विश्वास करना।

 

मुनीश्री सुज्ञेयसागर जी महाराज ह्यांचे प्राणत्याग

The short URL of the present article is: https://moonfires.com/xg85
Share This Article
Leave a Comment