दशहरा : विजयदशमी – दशहरा, जिसे विजयदशमी भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति का एक ऐसा पर्व है जो न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है और इसका संबंध रामायण की पौराणिक कथा से गहरे रूप में जुड़ा हुआ है। रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध और देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय, दोनों ही घटनाएँ इस दिन को विशेष बनाती हैं। दशहरे का यह पर्व हर वर्ष अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है और यह दिन हमें बुराई का नाश और सच्चाई की विजय का स्मरण कराता है।

दशहरे का ऐतिहासिक महत्व
दशहरे का इतिहास बहुत पुराना है और इसका जिक्र रामायण में विस्तार से मिलता है। जब राक्षसराज रावण ने देवी सीता का अपहरण किया, तब भगवान श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण और भक्त हनुमान के साथ लंका की ओर प्रस्थान करते हैं। इस यात्रा में श्रीराम को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने सदा धैर्य और संयम से काम लिया। श्रीराम का जीवन हमें यह सिखाता है कि कठिनाइयों से घबराने की बजाय, उनका साहस और विवेक से सामना करना चाहिए।
रावण, जो लंका का राजा था, एक महान योद्धा और विद्वान था। उसके पास अपार शक्ति और ज्ञान था, लेकिन उसने अहंकार और अधर्म का रास्ता चुना। जब रावण ने देवी सीता का हरण किया, तो उसने न केवल श्रीराम का अपमान किया, बल्कि धर्म का उल्लंघन भी किया। इस कारण भगवान श्रीराम ने धर्म की रक्षा के लिए रावण का वध किया। यह केवल एक व्यक्तिगत संघर्ष नहीं था, बल्कि यह बुराई और अन्याय के खिलाफ धर्म और सच्चाई की लड़ाई थी। रामायण की यह कथा दशहरे के महत्व को और भी अधिक गहराई प्रदान करती है।
दशहरा
दशहरा केवल रावण के वध तक सीमित नहीं है। इस दिन को देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय के रूप में भी मनाया जाता है। देवी दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन उसे पराजित कर दिया। यह विजयदशमी, दुर्गा पूजा के नौ दिनों के उपरांत आती है, जिसे नवरात्रि कहते हैं। इस प्रकार, यह पर्व हमें यह सिखाता है कि चाहे कितनी भी बड़ी बुराई क्यों न हो, सत्य, धर्म और शक्ति की विजय अंततः होती है।
रामायण से जुड़े महत्वपूर्ण प्रसंग
रामायण की कथा में दशहरे का बहुत गहरा संदर्भ है। जब श्रीराम वनवास के दौरान सीता के हरण के पश्चात उनकी खोज में निकले, तो उन्होंने वानरसेना की मदद से लंका तक पहुँचने का संकल्प लिया। इस यात्रा में हनुमान का महत्वपूर्ण योगदान रहा, जिन्होंने समुद्र पार करके सीता का पता लगाया और लंका में अपनी शक्ति का परिचय दिया। लंका कांड रामायण का वह महत्वपूर्ण हिस्सा है जो दशहरे से सीधे जुड़ा है।
लंका पहुँचने के बाद, भगवान श्रीराम और रावण के बीच एक महान युद्ध हुआ। यह युद्ध धर्म और अधर्म की लड़ाई थी। इस युद्ध में श्रीराम ने रावण का वध ब्रह्मास्त्र के द्वारा किया। इससे यह संदेश मिलता है कि चाहे कितना भी शक्तिशाली और ज्ञानवान व्यक्ति क्यों न हो, यदि वह अधर्म का मार्ग अपनाता है, तो उसका पतन निश्चित है। रावण का संहार केवल एक राजा की पराजय नहीं थी, बल्कि यह अन्याय और अहंकार का नाश था।
रामायण की इस महाकाव्य कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सत्य और धर्म का पालन सदा करना चाहिए, चाहे कठिनाइयाँ कितनी भी हों। श्रीराम का जीवन हमें सहनशीलता, कर्तव्यपरायणता और धैर्य का संदेश देता है। इसी कारण दशहरे को सत्य, साहस और धर्म की विजय के रूप में मनाया जाता है।
दशहरा के साथ जुड़ी परंपराएँ
दशहरे के दिन कई प्रकार की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएँ निभाई जाती हैं। इस दिन रावण दहन का आयोजन किया जाता है, जिसमें रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के विशाल पुतलों का दहन किया जाता है। यह प्रतीकात्मक रूप से बुराई का अंत और अच्छाई की विजय का संकेत होता है। रावण दहन के पीछे यह संदेश छिपा है कि हमें अपने भीतर की बुराइयों का नाश करना चाहिए, जैसे क्रोध, अहंकार, लोभ और मोह।
विजयदशमी का एक और महत्वपूर्ण पहलू है शस्त्र पूजा। यह परंपरा महाभारत काल से प्रचलित है, जब अर्जुन ने अपने गुप्तवास के दौरान अपने शस्त्रों को एक शमी वृक्ष के नीचे छुपा दिया था। गुप्तवास के बाद अर्जुन ने उसी वृक्ष से अपने शस्त्र निकालकर कौरवों पर विजय प्राप्त की थी। तब से शस्त्र पूजा की यह परंपरा चली आ रही है, जिसमें लोग अपने शस्त्रों और वाहनों की पूजा करते हैं। शस्त्र पूजा का यह अनुष्ठान दशहरे के दिन शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है।
शुभ मुहूर्त का महत्व
दशहरे के दिन शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व है। इस दिन किए गए कार्यों को अत्यधिक शुभ माना जाता है, विशेष रूप से शस्त्र पूजा और नए कार्यों की शुरुआत के लिए। इस वर्ष विजयदशमी का शुभ मुहूर्त दोपहर 1:42 बजे से लेकर 2:28 बजे तक रहेगा। इस दौरान किए गए कार्यों से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
शुभ मुहूर्त में रावण दहन करने से बुराइयों का अंत और जीवन में सकारात्मकता का आगमन होता है। इसके साथ ही देवी दुर्गा की पूजा और उनके विसर्जन का भी विशेष महत्व होता है। नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी दुर्गा की उपासना करने के बाद, दशहरे के दिन उनके विसर्जन की परंपरा है, जिससे देवी शक्ति के आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
दशहरे का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
दशहरे का धार्मिक महत्व अत्यधिक गहन है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ और बाधाएँ क्यों न आएँ, यदि हम धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते हैं, तो विजय अवश्य मिलेगी। रामायण में श्रीराम ने अपने जीवन में जिन आदर्शों का पालन किया, वे हमें भी प्रेरित करते हैं कि हम सदा सही और नैतिक मार्ग का अनुसरण करें।
धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो दशहरे का पर्व हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपने भीतर की बुराइयों का अंत करना चाहिए। जैसे श्रीराम ने रावण का वध किया, वैसे ही हमें अपने भीतर के रावण, अर्थात क्रोध, लोभ, अहंकार और द्वेष का नाश करना चाहिए। इस पर्व का यही प्रमुख संदेश है कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, सत्य की जीत निश्चित है।
सांस्कृतिक दृष्टि से दशहरा एकता, भाईचारे और नैतिकता का पर्व है। यह त्यौहार केवल धार्मिक कृत्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने की प्रेरणा भी देता है। समाज में अन्याय, भ्रष्टाचार और असमानता जैसी बुराइयों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने का संदेश यह पर्व देता है। दशहरे के दौरान विभिन्न स्थानों पर मेले, रावण दहन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिससे समाज के लोग एकत्र होकर इन बुराइयों के खिलाफ संघर्ष का संकल्प लेते हैं।
दशहरे से जुड़ी कुछ विशेष मान्यताएँ और परंपराएँ
दशहरे से जुड़ी कई मान्यताएँ और परंपराएँ हैं जो भारतीय संस्कृति में गहरे रूप से समाहित हैं। एक प्रमुख परंपरा है शमी वृक्ष की पूजा, जिसे महाभारत से जोड़कर देखा जाता है। अर्जुन ने अपने शस्त्रों को शमी वृक्ष के नीचे छिपाया था, और युद्ध के समय इसी वृक्ष के पास जाकर उन्होंने अपने शस्त्रों की पूजा की थी। तब से शमी वृक्ष की पूजा दशहरे के दिन की जाती है और इसे शुभ माना जाता है।
दशहरे के दिन रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का दहन करने की परंपरा है। यह प्रतीकात्मक रूप से बुराई का अंत दर्शाता है। रावण दहन का आयोजन बड़े पैमाने पर किया जाता है, जहाँ हजारों लोग एकत्रित होकर इस आयोजन का हिस्सा बनते हैं। यह हमें यह स्मरण दिलाता है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अच्छाई की विजय सदैव होती है।
दशहरा नई शुरुआत का प्रतीक भी है। इस दिन लोग अपने जीवन में नए कार्यों की शुरुआत करते हैं, जैसे नए व्यवसाय, व्यापार या किसी महत्वपूर्ण योजना की शुरुआत। यह दिन विशेष रूप से नए कार्यों और योजनाओं के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है।
दशहरे का वर्तमान संदर्भ
आज के आधुनिक युग में भी दशहरे का महत्व कम नहीं हुआ है। यह पर्व हमें हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों की याद दिलाता है। आज के समाज में जहाँ अन्याय, भ्रष्टाचार और असमानता जैसी बुराइयाँ व्याप्त हैं, दशहरे का पर्व हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें संगठित होकर इन बुराइयों के खिलाफ संघर्ष करना चाहिए।
आज भी दशहरे का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है। विभिन्न शहरों में बड़े पैमाने पर रावण दहन का आयोजन होता है, जहाँ लोग एकत्र होकर बुराई के प्रतीक रावण का अंत करते हैं। यह पर्व समाज में एकता, नैतिकता और साहस का संदेश फैलाता है।
दशहरा
दशहरा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन में सत्य, धर्म और नैतिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देता है। रामायण की कथा और श्रीराम का जीवन हमें सिखाता है कि कठिनाइयों और संघर्षों का सामना धैर्य, साहस और विवेक से करना चाहिए।


If you want to use your preferred UPI app, our UPI ID is raj0nly@UPI (you can also scan the QR Code below to make a payment to this ID.