माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी)

Moonfires
Moonfires
48 Views
8 Min Read
सरसंघचालक गोलवलकर गुरुजी
सरसंघचालक गोलवलकर गुरुजी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक: माधव सदाशिव गोलवलकर (गुरुजी)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भारत का एक प्रमुख सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी संगठन है, जिसकी स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। इस संगठन को एक अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान करने और हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को मजबूत करने में द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर, जिन्हें उनके अनुयायी प्रेम और सम्मान से ‘गुरुजी’ कहते हैं, का योगदान अतुलनीय रहा है। यह लेख उनके जीवन, विचारधारा, और संघ के लिए किए गए कार्यों पर प्रकाश डालता है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

माधव सदाशिव गोलवलकर का जन्म 19 फरवरी 1906 को महाराष्ट्र के नागपुर के निकट रामटेक में एक मराठी करहाड़े ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सदाशिवराव और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। नौ भाई-बहनों में वह एकमात्र जीवित पुत्र थे, जिसके कारण उनके माता-पिता के लिए वे अत्यंत प्रिय थे।

गोलवलकर की प्रारंभिक शिक्षा नागपुर में हुई। उन्होंने हिसलोप कॉलेज, नागपुर से इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर 1924 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) में प्रवेश लिया। वहां उन्होंने विज्ञान में स्नातक (1926) और मास्टर डिग्री (1928) प्राप्त की। BHU में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात राष्ट्रवादी नेता और विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय से हुई, जिनसे वे गहरे रूप से प्रभावित हुए। बाद में उन्होंने कुछ समय तक BHU में ही जंतुशास्त्र (Zoology) के प्राध्यापक के रूप में भी कार्य किया, जहां छात्रों ने उन्हें ‘गुरुजी’ कहना शुरू किया। यह उपनाम उनके साथ जीवनभर रहा।

संघ से जुड़ाव और प्रारंभिक योगदान

माधव गोलवालकर का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से पहला संपर्क 1928 में BHU में हुआ। उस समय संघ के स्वयंसेवक भैयाजी दाणी और नानाजी व्यास ने वहां शाखा शुरू की थी। गोलवलकर संघ के विचारों और डॉ. हेडगेवार की राष्ट्रवादी दृष्टि से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने 1931 तक शाखा के संचालक के रूप में कार्य किया। 1932 में उनकी मुलाकात डॉ. हेडगेवार से हुई, और 1937 में नागपुर लौटने के बाद उन्होंने संघ कार्य को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।

1939 में, डॉ. हेडगेवार ने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए गोलवलकर को रक्षाबंधन के अवसर पर संघ का सरकार्यवाह नियुक्त किया। 1940 में जब डॉ. हेडगेवार का निधन हो गया, तब उन्होंने अपने अंतिम क्षणों में गोलवलकर को संघ का नेतृत्व सौंपा। 21 जून 1940 को डॉ. हेडगेवार के निधन के बाद, मात्र 34 वर्ष की आयु में गोलवलकर संघ के द्वितीय सरसंघचालक बने।

सरसंघचालक के रूप में योगदान (1940-1973)

माधव सदाशिव गोलवलकर ने 33 वर्षों तक (1940-1973) संघ के सरसंघचालक के रूप में कार्य किया, जो संघ के इतिहास में सबसे लंबा कार्यकाल है। इस दौरान उन्होंने संगठन को एक मजबूत और अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान किया। उनके नेतृत्व में संघ ने कई ऐतिहासिक और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना किया, जिनमें शामिल हैं:

  1. देश का विभाजन (1947): गोलवलकर ने देश के विभाजन का पुरजोर विरोध किया। 16 अगस्त 1946 को मुहम्मद अली जिन्नाह द्वारा घोषित ‘सीधी कार्यवाही’ के दिन हिंदुओं पर हुए हमलों के दौरान, गोलवलकर ने स्वयंसेवकों को हिंदुओं की सुरक्षा के लिए प्रेरित किया। विभाजन के बाद, जब लाखों हिंदू पाकिस्तान से भारत आए, तब स्वयंसेवकों ने उनकी सुरक्षा और पुनर्वास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  2. गांधी हत्या और संघ पर प्रतिबंध (1948): महात्मा गांधी की हत्या के बाद, कुछ राजनीतिक नेताओं ने संघ पर अनुचित आरोप लगाए, जिसके परिणामस्वरूप 1948 में संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गोलवलकर ने इस अन्याय के खिलाफ सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जिसमें 77,090 स्वयंसेवकों ने भाग लिया और जेलें भरीं। अंततः, जांच में संघ की संलिप्तता नहीं पाई गई, और 1949 में प्रतिबंध हटा लिया गया। गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल ने भी स्पष्ट किया कि गांधी हत्या में संघ का कोई हाथ नहीं था।
  3. हिंदू राष्ट्र की अवधारणा: गोलवलकर ने ‘हिंदू राष्ट्र’ की अवधारणा को स्पष्ट और व्यापक रूप दिया। उनकी पुस्तक We, or Our Nationhood Defined (1939) और उनके भाषणों का संकलन Bunch of Thoughts हिंदुत्व की विचारधारा को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं। उनके अनुसार, हिंदू राष्ट्र का अर्थ केवल धार्मिक पहचान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, मूल्यों और सभ्यता का संरक्षण और प्रचार है।
  4. चीन और पाकिस्तान युद्धों में योगदान: 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965 के भारत-पाक युद्ध में संघ के स्वयंसेवकों ने सेना और नागरिकों की सहायता की। गोलवलकर ने स्वयंसेवकों को प्रेरित किया और 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भाग लिया।
  5. संघ का विस्तार: गोलवलकर के नेतृत्व में संघ की शाखाओं की संख्या में भारी वृद्धि हुई। 1940 में जहां संघ की कुछ सौ शाखाएं थीं, वहीं 1973 तक यह संख्या हजारों में पहुंच गई। उन्होंने संघ शिक्षा वर्गों को व्यवस्थित किया, जिनमें प्राथमिक, प्रथम, द्वितीय और तृतीय वर्ष के प्रशिक्षण शामिल थे।

विचारधारा और दर्शन

गोलवलकर का दर्शन स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद और लोकमान्य तिलक जैसे विचारकों से प्रेरित था। वे मानते थे कि भारत की एकता और शक्ति इसके सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों में निहित है। उनके विचार में, हिंदुत्व एक जीवनशैली है, जो भारतीयता को समग्र रूप से परिभाषित करती है। उन्होंने व्यक्तिवाद का विरोध किया और सामूहिकता, अनुशासन, और राष्ट्र के प्रति समर्पण पर जोर दिया।

उनके नेतृत्व में संघ ने न केवल हिंदू समाज को संगठित किया, बल्कि शिक्षा, सेवा, और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी कार्य किया। उन्होंने रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी अखंडानंद से सन्यास की दीक्षा ली थी, और उनका संन्यासी जीवन राष्ट्रसेवा के प्रति समर्पित रहा।

अंतिम वर्ष और विरासत

1973 में, गोलवलकर का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। मार्च 1973 में, वे रांची में एक कार्यकर्ता शिविर में भाग लेने गए, जहां उनकी तबीयत और खराब हो गई। 5 जून 1973 को नागपुर में उनका निधन हो गया। उनके निधन के समय तक संघ एक विशाल संगठन बन चुका था, जो भारत के हर कोने में फैल चुका था।

गोलवलकर को उनके अनुयायी आज भी ‘गुरुजी’ के रूप में श्रद्धा से याद करते हैं। उनकी जयंती (19 फरवरी) और पुण्यतिथि (5 जून) पर देशभर में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

 


 

माधव सदाशिव गोलवलकर ने अपने 33 वर्षों के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को न केवल एक संगठन के रूप में मजबूत किया, बल्कि इसे एक विचारधारा और मिशन के रूप में स्थापित किया। उनकी दूरदृष्टि, तपस्या, और राष्ट्रभक्ति ने लाखों स्वयंसेवकों को प्रेरित किया। आज भी उनकी शिक्षाएं और हिंदू राष्ट्र की अवधारणा संघ के कार्यों का आधार बनी हुई हैं। गुरुजी का जीवन राष्ट्रसेवा, संगठन शक्ति, और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।

संदर्भ:

  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – विकिपीडिया
  • माधव सदाशिव गोलवलकर – विकिपीडिया
  • M. S. Golwalkar – Wikipedia
  • श्री माधव सदाशिव राव गोलवलकर का जीवन परिचय
  • गोलवलकर: आरएसएस का वो मुखिया जो कुछ लोगों के लिए ‘गुरुजी’
The short URL of the present article is: https://moonfires.com/57rv
Share This Article
Follow:
राज पिछले 20 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं। Founder Of Moonfires.com
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *