शारदीय नवरात्रि 2024
शारदीय नवरात्रि हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो माँ दुर्गा की उपासना और शक्ति की आराधना के लिए समर्पित है। यह त्योहार वर्ष में दो बार आता है, चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि के रूप में। इनमें से शारदीय नवरात्रि विशेष महत्व रखती है क्योंकि यह शरद ऋतु में आती है और इसे माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का पर्व माना जाता है। नवरात्रि के दौरान भक्त अपने घरों में कलश स्थापना कर देवी दुर्गा का आवाहन करते हैं और नौ दिनों तक व्रत, पूजा, और हवन के माध्यम से माँ की आराधना करते हैं।
शारदीय नवरात्रि का मतलब क्या होता है?
“शारदीय” शब्द का संबंध शरद ऋतु से है, जो वर्ष के उस समय को संदर्भित करता है जब शरद ऋतु (सर्दियों की शुरुआत) होती है। शारदीय नवरात्रि का मतलब है कि यह नवरात्रि शरद ऋतु में मनाई जाती है। “नवरात्रि” का अर्थ है “नौ रातें,” और इन नौ रातों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, जैसा कि महिषासुर मर्दिनी के रूप में माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। नवरात्रि के दिनों में, विभिन्न देवी रूपों की पूजा की जाती है—शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री।
इन नौ दिनों में हर देवी के रूप का विशेष महत्व होता है, और प्रत्येक देवी के अलग-अलग मंत्र, पूजा विधि और आह्वान का तरीका होता है। भक्त माँ दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
2024 में नवरात्रि कब शुरू हुई?
2024 में शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर 2024 से हो रही है। यह दिन माँ दुर्गा के भक्तों के लिए बहुत खास होता है, क्योंकि इसी दिन से नवरात्रि के पवित्र नौ दिन प्रारंभ होते हैं। इन दिनों में भक्त अपने घरों में माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करके पूजा-अर्चना करते हैं और अपने घर को पवित्र और धार्मिक वातावरण से भर देते हैं।
शारदीय नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना (घट स्थापना) की जाती है, जो माँ दुर्गा के स्वागत और उन्हें अपने घर में आमंत्रित करने का प्रतीक होता है। 3 अक्टूबर से शुरू होकर यह उत्सव 12 अक्टूबर 2024 तक चलेगा, और दशमी के दिन विजयादशमी (दशहरा) मनाया जाएगा।
2024 में दुर्गा पूजा कब है? कलश स्थापना
शारदीय नवरात्रि की शुरुआत घट स्थापना या कलश स्थापना से होती है। 2024 में यह महत्वपूर्ण अनुष्ठान 3 अक्टूबर 2024 को किया जाएगा। कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त दिन की शुरुआत में ही होता है, विशेषकर ब्रह्म मुहूर्त या अभिजीत मुहूर्त में। कलश स्थापना वह विधि है जिसमें एक पवित्र कलश को देवी दुर्गा का प्रतीक मानकर स्थापित किया जाता है। इसके बाद नौ दिनों तक उसी स्थान पर माँ दुर्गा की उपासना की जाती है।
कलश स्थापना की विधि:
- स्थान की शुद्धि: सबसे पहले पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है। इसके बाद लाल वस्त्र बिछाकर देवी का आवाहन किया जाता है।
- कलश तैयार करना: तांबे या मिट्टी के कलश का प्रयोग किया जाता है, जिसमें जल, दूर्वा, चावल, सुपारी और सिक्के रखे जाते हैं। कलश के ऊपर आम के पत्ते और नारियल रखकर इसे सजाया जाता है।
- माँ दुर्गा की स्थापना: कलश को एक स्वच्छ और शुभ स्थान पर रखा जाता है। इसके बाद, माँ दुर्गा का आह्वान किया जाता है और उनकी पूजा की जाती है।
शारदीय नवरात्रि का शुभ मुहूर्त क्या है?
शारदीय नवरात्रि 2024 में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 3 अक्टूबर 2024 को सुबह के समय रहेगा। शुभ मुहूर्त न केवल पूजा की शुरुआत के लिए महत्वपूर्ण होता है, बल्कि यह अनुष्ठान की सफलता और देवी की कृपा प्राप्त करने के लिए भी आवश्यक है। कलश स्थापना के लिए मुख्य रूप से ब्रह्म मुहूर्त को प्राथमिकता दी जाती है, जो सूर्योदय से पहले का समय होता है। इसके अलावा, यदि ब्रह्म मुहूर्त संभव न हो, तो अभिजीत मुहूर्त भी एक उत्तम विकल्प होता है।
कलश स्थापना के मुहूर्त के कुछ प्रमुख समय:
- ब्रह्म मुहूर्त: प्रातः 4:30 से 6:00 बजे तक।
- अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:36 से 12:24 बजे तक।
भक्तों को सलाह दी जाती है कि वे इन समयों में ही कलश स्थापना करें ताकि वे माँ दुर्गा की पूर्ण कृपा प्राप्त कर सकें।
कलश स्थापना करते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए?
कलश स्थापना के दौरान देवी का आवाहन मंत्र उच्चारित किया जाता है। यह मंत्र माँ दुर्गा की उपस्थिति और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए बोला जाता है। मंत्र इस प्रकार है:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
इस मंत्र के साथ कलश की पूजा की जाती है और माँ दुर्गा को आमंत्रित किया जाता है। यह मंत्र शक्तिशाली माना जाता है और इसे उच्चारित करने से घर में शांति, समृद्धि और शुभता का संचार होता है। कलश स्थापना के समय ध्यान करना चाहिए कि पूजा विधि विधिपूर्वक हो और मंत्र का उच्चारण शुद्धता के साथ किया जाए।

शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों की देवी पूजा
शारदीय नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन एक विशिष्ट देवी की आराधना का दिन होता है, और हर देवी का अपना विशेष महत्व और पूजा विधि होती है।
- पहला दिन – शैलपुत्री: यह दिन माँ शैलपुत्री की पूजा के लिए समर्पित होता है। माँ शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और शक्ति का प्रतीक मानी जाती हैं।
- दूसरा दिन – ब्रह्मचारिणी: दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है, जो तपस्या और ध्यान की देवी हैं। यह दिन आत्म-नियंत्रण और अनुशासन का महत्व बताता है।
- तीसरा दिन – चंद्रघंटा: माँ चंद्रघंटा तीसरे दिन की देवी हैं, जो साहस और शक्ति का प्रतीक हैं। उनकी पूजा से भय और संकटों से मुक्ति मिलती है।
- चौथा दिन – कूष्मांडा: चौथे दिन माँ कूष्मांडा की पूजा की जाती है, जो ब्रह्मांड की सृष्टि की देवी मानी जाती हैं। उनकी आराधना से समृद्धि और खुशहाली का आशीर्वाद मिलता है।
- पाँचवाँ दिन – स्कंदमाता: यह दिन माँ स्कंदमाता की पूजा के लिए होता है। माँ स्कंदमाता को बुद्धि और ज्ञान की देवी माना जाता है।
- छठा दिन – कात्यायनी: छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है, जो योद्धा देवी हैं और बुराई का नाश करती हैं।
- सातवाँ दिन – कालरात्रि: सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा होती है, जो अज्ञान और अंधकार का नाश करती हैं। इस दिन को तंत्र-मंत्र और साधना का दिन भी माना जाता है।
- आठवाँ दिन – महागौरी: आठवें दिन माँ महागौरी की पूजा होती है। वे पवित्रता और शांति का प्रतीक हैं और भक्तों को सुख-शांति का आशीर्वाद देती हैं।
- नवाँ दिन – सिद्धिदात्री: अंतिम दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, जो सभी प्रकार की सिद्धियों और उपलब्धियों को प्रदान करती हैं।
शारदीय नवरात्रि का सांस्कृतिक महत्व
शारदीय नवरात्रि न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सांस्कृतिक महत्व भी है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में इसे भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल में इसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है, जहां माँ दुर्गा की प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है और विशाल पंडाल सजाए जाते हैं। गुजरात में गरबा और डांडिया नृत्य का आयोजन होता है, जिसमें लोग रात भर नृत्य करते हैं और माँ दुर्गा की आराधना करते हैं। उत्तर भारत में इसे रामलीला और दशहरे के रूप में मनाया जाता है, जहां भगवान राम की लंका विजय और रावण वध का उत्सव मनाया जाता है।
नवरात्रि के व्रत और उपवास
नवरात्रि के दौरान व्रत और उपवास का विशेष महत्व होता है। भक्त इस दौरान विशेष नियमों का पालन करते हैं और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। इन नौ दिनों में अनाज, प्याज, लहसुन आदि का सेवन नहीं किया जाता है। इसके बजाय फल, दूध, और हल्का भोजन लिया जाता है। उपवास रखने से शरीर और मन की शुद्धि होती है और आत्मा को भी शांति मिलती है।
शारदीय नवरात्रि एक महान आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पर्व है जो माँ दुर्गा की उपासना और शक्ति के महत्व को बताता है। यह त्योहार हमें शक्ति, साहस, धैर्य और भक्ति की प्रेरणा देता है। 2024 में यह पर्व 3 अक्टूबर से शुरू होकर 12 अक्टूबर को विजयादशमी के साथ समाप्त होगा। नवरात्रि के दौरान घट स्थापना, व्रत, और माँ दुर्गा की पूजा विशेष महत्व रखती है। यह त्योहार न केवल धार्मिक अनुष्ठानों का अवसर है, बल्कि आत्मिक शुद्धिकरण और समाजिक एकता का संदेश भी देता है।


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