शिव मंत्र भावार्थ सहित

भारत भूमी के लोग भोलेनाथ के भक्त है , पोस्ट में आपके के लिए शिव मंत्र (Shiv Mantra) भावार्थ सहित उपलब्द कराये है जो आपको काफी पसंद आयेंगे शिब मंत्र भावार्थ सहित जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें यहाँ एक से बढ़कर एक शिव मंत्र दिए है।

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय। 
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै नकाराय नम: शिवाय ॥

भावार्थ : जो शिव नागराज वासुकि का हार पहिने हुए हैं, तीन नेत्रों वाले हैं, तथा भस्म की राख को सारे शरीर में लगाये हुए हैं, इस प्रकार महान् ऐश्वर्य सम्पन्न वे शिव नित्य–अविनाशी तथा शुभ हैं। दिशायें जिनके लिए वस्त्रों का कार्य करती हैं, अर्थात् वस्त्र आदि उपाधि से भी जो रहित हैं; ऐसे निरवच्छिन्न उस नकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।


मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय। 
मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै मकाराय नम: शिवाय ॥

भावार्थ : जो शिव आकाशगामिनी मन्दाकिनी के पवित्र जल से संयुक्त तथा चन्दन से सुशोभित हैं, और नन्दीश्वर तथा प्रमथनाथ आदि गण विशेषों एवं षट् सम्पत्तियों से ऐश्वर्यशाली हैं, जो मन्दार–पारिजात आदि अनेक पवित्र पुष्पों द्वारा पूजित हैं; ऐसे उस मकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।

 


 

 

शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। 
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै शिकाराय नम: शिवाय ॥

भावार्थ : जो शिव स्वयं कल्याण स्वरूप हैं, और जो पार्वती के मुख कमलों को विकसित करने के लिए सूर्य हैं, जो दक्ष–प्रजापति के यज्ञ को नष्ट करने वाले हैं, नील वर्ण का जिनका कण्ठ है, और जो वृषभ अर्थात् धर्म की पताका वाले हैं; ऐसे उस शिकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।


वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय। 
चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै वकाराय नम: शिवायः ॥

भावार्थ : वसिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि श्रेष्ठ मुनीन्द्र वृन्दों से तथा देवताओं से जिनका मस्तक हमेशा पूजित है, और जो चन्द्र–सूर्य व अग्नि रूप तीन नेत्रों वाले हैं; ऐसे उस वकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।


यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय। 
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै यकाराय नम: शिवाय् ॥

भावार्थ : जो शिव यक्ष के रूप को धारण करते हैं और लंबी–लंबी खूबसूरत जिनकी जटायें हैं, जिनके हाथ में ‘पिनाक’ धनुष है, जो सत् स्वरूप हैं अर्थात् सनातन हैं, दिव्यगुणसम्पन्न उज्जवलस्वरूप होते हुए भी जो दिगम्बर हैं; ऐसे उस यकार स्वरूप शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।


ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥

भावार्थ : हम त्रि-नेत्रीय वास्तविकता का चिंतन करते हैं जो जीवन की मधुर परिपूर्णता को पोषित करता है और वृद्धि करता है। ककड़ी की तरह हम इसके तने से अलग (“मुक्त”) हों, अमरत्व से नहीं बल्कि मृत्यु से हों ।


सदुपायकथास्वपण्डितो हृदये दु:खशरेण खण्डित:। 
शशिखण्डमण्डनं शरणं यामि शरण्यमीरम् ॥

भावार्थ : हे शम्भो! मेरा हृदय दु:ख रूपीबाण से पीडित है, और मैं इस दु:ख को दूर करने वाले किसी उत्तम उपाय को भी नहीं जानता हूँ अतएव चन्द्रकला व शिखण्ड मयूरपिच्छ का आभूषण बनाने वाले, शरणागत के रक्षक परमेश्वर आपकी शरण में हूँ। अर्थात् आप ही मुझे इस भयंकर संसार के दु:ख से दूर करें।

 

अर्थासह भगवद्गीतेचे प्रसिद्ध श्लोक

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