अतिथि देवो भवः, भारतीय संस्कृति में अतिथि को सर्वोपरि स्थान दिया गया है। अतिथि का अर्थ है वह व्यक्ति जो अचानक हमारे घर आ जाए। हमारे यहां कहा जाता है कि अतिथि भगवान के समान होता है। इसलिए हमें उनका स्वागत पूरे आदर और सम्मान के साथ करना चाहिए।
अर्थ
अतिथि देवो भवः का शाब्दिक अर्थ है “अतिथि भगवान के समान है”। यह संस्कृत का एक वाक्यांश है जो भारतीय संस्कृति में अतिथि सत्कार के महत्व को दर्शाता है। इस वाक्यांश का प्रयोग अतिथियों का स्वागत करने और उनके प्रति सम्मान दिखाने के लिए किया जाता है।
संस्कृति
भारतीय संस्कृति में अतिथि सत्कार का एक लंबा इतिहास रहा है। प्राचीन काल से ही, अतिथियों को भगवान का रूप माना जाता था और उनकी पूजा की जाती थी। इस परंपरा को आज भी जारी रखा गया है, और भारतीय लोग अपने घरों में आने वाले मेहमानों का बहुत आदर करते हैं।
अतिथि देवो भवः के पीछे कई कारण हैं। सबसे पहले, यह माना जाता है कि अतिथि भगवान के दूत होते हैं। इसलिए, उनका स्वागत पूरे सम्मान और विनम्रता के साथ करना चाहिए। दूसरा, अतिथि सत्कार एक पुण्य कार्य माना जाता है। जो लोग अतिथियों की सेवा करते हैं, उन्हें स्वर्ग में पुण्य प्राप्त होता है। तीसरा, अतिथि सत्कार से समाज में सद्भाव और एकता को बढ़ावा मिलता है। जब लोग एक-दूसरे के घरों में जाते हैं और एक-दूसरे की संस्कृतियों को साझा करते हैं, तो इससे समझ और सद्भाव पैदा होता है।
वैश्वीकरण
आज के समय में, अतिथि देवो भवः का महत्व और भी बढ़ गया है। वैश्वीकरण के कारण, लोग दुनिया के विभिन्न हिस्सों से यात्रा करते हैं। ऐसे में, यह महत्वपूर्ण है कि हम अपने मेहमानों का स्वागत पूरे सम्मान और विनम्रता के साथ करें। इससे न केवल हमारे मेहमानों को अच्छा लगेगा, बल्कि यह हमारे देश की संस्कृति और परंपराओं को भी बढ़ावा देगा।
अतिथि देवो भवः एक महान आदर्श है जो हमें अपने मेहमानों की सेवा करने और उनका सम्मान करने के लिए प्रेरित करता है। इस आदर्श का पालन करके, हम न केवल अपने मेहमानों को खुश कर सकते हैं, बल्कि हम समाज में सद्भाव और एकता को भी बढ़ावा दे सकते हैं।
FAQ
१. अतिथि देवो भवः
अतिथि देवो भव: असल में भारतीयों के आदर और सत्कार की भावना का वर्णन करता है और इसलिए ही हमारे यहां इसे इतना प्रचलित माना जाता है। भारत में मेहमान नवाजी को बहुत ही महत्व दिया जाता है। हमारे यहां घर आए अतिथि का अनादर कभी नहीं किया जाता है।
२. संस्कृत वाक्यांश अतिथि देवो भव जिसका अर्थ है अतिथि भगवान है किस उपनिषद से लिया गया है?
संस्कृत वाक्यांश ‘अतिथि देवो भव’ जिसका अर्थ है ‘अतिथि भगवान है’, यह वाक्यांश ‘तैत्तिरीयोपनिषद‘ से लिया गया है। यह वाक्यांश तैत्तिरीय उपनिषद के शिक्षावली के 11वें अनुवाद की दूसरे स्रोत में लिखा है, वह इस प्रकार है-देवपितृकार्याभ्यां न प्रमादितव्यं। मातृदेवो भव।
३. भारत को अतिथि देवो भव क्यों कहा जाता है?
संस्कृत वाक्यांश “अतिथि देवो भव” का अर्थ है अतिथि भगवान का रूप है। वर्तमान समय में भारत सरकार भारतीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए इस कहावत का प्रयोग कर रही है। वर्ष 2003 में अतुल्य भारत के अंतर्गत अतिथि देवो भव का प्रयोग शुरू किया गया ताकि विभिन्न देशों से लोग पर्यटन के लिए भारत आएं ।