कौन थे गुमनामी बाबा? – गुमनामी बाबा बंगाली थे। वो बंगाली, अंग्रेजी और हिंदी भाषा के जानकार थे। वे एक असाधारण मेधावी व्यक्ति थे। अयोध्या के राम भवन से बंगाली, अंग्रेजी और हिन्दी में अनेक विषयों की पुस्तकें प्राप्त हुई हैं। गुमनामी बाबा को युद्ध, राजनीति और सामयिक की गहन जानकारी थी। उनकी आवाज नेताजी सुभाषचंद्र बोस के स्वर जैसा था।
गुमनामी बाबा
जिनके बारे में कई लोगों का मानना है कि वह वास्तव में नेताजी (बोस) हैं और उत्तर प्रदेश के कई स्थानों पर साधु की वेश में रहते थे, जिनमें नैमिषारण्य (निमसर), बस्ती, अयोध्या और फैजाबाद शामिल हैं. लोगों का मानना है कि वे ज्यादातर शहर के भीतर ही अपना निवास स्थान बदलता रहते थे. उन्होंने कभी अपने घर से बाहर कदम नहीं रखा, बल्कि कमरे में केवल अपने कुछ विश्वासियों से मुलाकात की और अधिकांश लोगों ने उन्हें कभी नहीं देखने का दावा किया.
फैजाबाद में स्थानीय लोगों के मुताबिक गुमनामी बाबा या भगवनजी 1970 के दशक में जिले में पहुंचे थे। शुरुआत में यह अयोध्या की लालकोठी में बतौर किराएदार रहा करते थे और कुछ ही दिन बाद बस्ती में जाकर रहने लगे थे।
लेकिन बस्ती उन्हें बहुत रास नहीं आया और भगवनजी वापस अयोध्या लौटकर पंडित रामकिशोर पंडा के घर रहने लगे। कुछ वर्ष बाद इनका अगला पड़ाव था अयोध्या सब्जी मंडी के बीचोबीच स्थित लखनऊवा हाता जहां वे बेहद गुप्त तरीके से रहे।
इनके साथ इनकी एक सेविका सरस्वती देवी रहीं जिन्हें यह जगदम्बे के नाम से बुलाया करते थे। बताया जाता है कि इस महिला का ताल्लुक नेपाल के राजघराने से था लेकिन ये पढ़ी-लिखी नहीं थीं।
नेताजी से सम्बंधित दुनियाभर में छपी खबर गुमनामी बाबा के पास मिली। जब से इस गुमनामी बाबा या भगवनजी का निजी सामान बरामद हुआ और जांचा परखा गया है तब से इस बात का कौतूहल बढ़ा है कि यह शख्स कौन था।
एक बात जो तय है वह ये कि यह कोई साधारण बाबा नहीं थे। जिस तरह का सामान इस व्यक्ति के पास से बरामद हुआ वह कुछ बातें खास तौर पर दर्शाता है। पहली यह कि इस व्यक्ति ने अपने इर्द-गिर्द गोपनीयता बनाकर रखी।
दूसरी यह कि शायद यह बात कोई नहीं जान सका कि यह व्यक्ति 1970 के दशक में फैजाबाद-बस्ती के इलाके में कहां से पधारा।
तीसरी, स्थानीय और बाबा के करीब रहे लोगों की मानें तो वह कौन लोग थे जो इस बाबा से मिलने दुर्गा पूजा और 23 जनवरी के दिनों में गुप्त रूप से फैजाबाद आते थे और उस वक्त बाबा के परम श्रद्धालु और निकट कहे जाने वाले परिवारजनों को भी उनसे मिलने की मनाही थी।
चौथी, अगर यह व्यक्ति जंगलों में ध्यानरत एक संत था तब इतनी फर्राटेदार अंग्रेजी और जर्मन कैसे बोलता था। पांचवी, इस व्यक्ति के पास दुनिया भर के नामचीन अखबार, पत्रिकाएं, साहित्य, सिगरेट और शराबें कौन पहुंचाता था।
आखिरी बात यही कि इस व्यक्ति के जीते जी तो कई लोगों ने सुभाष चंद्र बोस होने का दावा किया और उन्हें प्रकट कराने का दम भरा (जय गुरुदेव एक उदाहरण), लेकिन इस व्यक्ति की मौत के बाद से नेताजी के जीवित होने सम्बन्धी सभी कयास बंद से क्यों हो गए।
गुमनामी बाबा आखिरकार 1983 में फैजाबाद में राम भवन के एक आउट-हाउस में बस गए, जहां कथित तौर पर 16 सितंबर 1985 को उनकी मृत्यु हो गई और 18 सितंबर को दो दिन बाद उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया. अगर यह वास्तव में नेताजी थे तो वे 88 वर्ष के थे.
इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि वास्तव में उनकी मृत्यु हुई है. शव यात्रा के दौरान कोई मृत्यु प्रमाण पत्र, शव की तस्वीर या उपस्थित लोगों की कोई तस्वीर नहीं है. कोई श्मशान प्रमाण पत्र भी नहीं है. ऐसा भी कहा जाता है कि गुमनामी बाबा के निधन के बारे में लोगों को तुरंत पता नहीं चला था, उनकी मृत्यु के 42 दिन बाद लोगों को पता चला. उनका जीवन और मृत्यु, दोनों रहस्य में डूबा रहा और कोई नहीं जानता कि क्यों.
सरकारी खजाने में जमा गुमनामी बाबा का सामान
- सुभाष चंद्र बोस के माता-पिता/परिवार की निजी तस्वीरें
- कलकत्ता में हर वर्ष 23 जनवरी को मनाए जाने वाले नेताजी जन्मोत्सव की तस्वीरें
- लीला रॉय की मृत्यु पर हुई शोक सभाओं की तस्वीरें
- नेताजी की तरह के दर्जनों गोल चश्मे
- 555 सिगरेट और विदेशी शराब का बड़ा ज़खीरा
- रोलेक्स की जेब घड़ी
- आजाद हिन्द फौज की एक यूनिफॉर्म
- 1974 में कलकत्ता के दैनिक ‘आनंद बाजार पत्रिका’ में 24 किस्तों में छपी खबर ‘ताइहोकू विमान दुर्घटना एक बनी हुई कहानी’ की कटिंग्स
- जर्मन, जापानी और अंग्रेजी साहित्य की ढेरों किताबें
- भारत-चीन युद्ध सम्बन्धी किताबें जिनके पन्नों पर टिप्पणियां लिखी गईं थीं
- सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु की जांच पर बने शाहनवाज़ और खोसला आयोग की रिपोर्टें
- सैंकड़ों टेलीग्राम, पत्र आदि जिन्हें भगवनजी के नाम पर संबोधित किया गया थ
- हाथ से बने हुए नक्शे जिनमे उस जगह को इंगित किया गया था जहां कहा जाता है नेताजी का विमान क्रैश हुआ था
- आजाद हिन्द फौज की गुप्तचर शाखा के प्रमुख पवित्र मोहन रॉय के लिखे गए बधाई सन्देश
गुमनामी बाबा: रहस्य
१. कौन थे गुमनामी बाबा?
गुमनामी बाबा एक रहस्यमय व्यक्ति थे जिन्होंने 1950 के दशक से 1985 में अपनी मृत्यु तक अयोध्या में एकांत जीवन व्यतीत किया। वे हमेशा भगवा वस्त्र पहनते थे, किसी से बात नहीं करते थे, और मौन रहते थे।
२. नेताजी से जुड़ाव:
गुमनामी बाबा की रहस्यमय जीवनशैली और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के कथित रूप से 1945 में विमान दुर्घटना में मृत्यु न होने की अफवाहों ने लोगों को यह अनुमान लगाने पर मजबूर किया कि वे वास्तव में नेताजी ही हैं।
३. समानताएं:
- गुमनामी बाबा नेताजी से शारीरिक रूप से काफी मिलते-जुलते थे।
- वे जर्मन, जापानी और अंग्रेजी भाषा जानते थे, जो नेताजी भी जानते थे।
- उनके पास नेताजी से जुड़ी वस्तुएं जैसे कि उनकी पसंदीदा घड़ी, चश्मा और पाइप भी मिली थीं।
४ . अनसुलझे रहस्य:
- गुमनामी बाबा ने कभी भी अपनी पहचान का खुलासा नहीं किया।
- उनकी उंगलियों के निशान और डीएनए का मिलान नेताजी के परिवार के सदस्यों से नहीं हुआ।
- कई जांच आयोगों ने भी उनकी पहचान का निश्चित रूप से पता नहीं लगाया।
५ .वर्तमान स्थिति:
आज भी, गुमनामी बाबा की पहचान एक रहस्य बनी हुई है। कुछ लोग उन्हें नेताजी मानते हैं, जबकि अन्य उन्हें एक धोखेबाज मानते हैं।
निष्कर्ष:
गुमनामी बाबा की कहानी भारतीय इतिहास के सबसे बड़े रहस्यों में से एक है। उनकी पहचान चाहे जो भी हो, वे एक अद्भुत व्यक्ति थे जिन्होंने अपना जीवन एकांत और रहस्य में व्यतीत किया।
लेख संदर्भ – संकलित