यल्लम्मा देवी ( सौंदत्ती )

Raj K
By Raj K
11 Views
Raj K
6 Min Read
यल्लम्मा देवी ( सौंदत्ती )
यल्लम्मा देवी ( सौंदत्ती )

यल्लम्मा देवी, जिन्हें रेणुका देवी के नाम से भी जाना जाता है, कर्नाटक के सौंदत्ती शहर के पास स्थित एक लोकप्रिय देवी हैं। उनका मंदिर, जिसे यल्लम्मा मंदिर या रेणुका मंदिर के नाम से जाना जाता है, सिद्धाचल पर्वत पर स्थित है, जिसे अब यल्लम्मा गुड्डा के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर कर्नाटक और महाराष्ट्र दोनों राज्यों के भक्तों को आकर्षित करता है।

यल्लम्मा देवी ( सौंदत्ती )
यल्लम्मा देवी ( सौंदत्ती )

यल्लम्मा देवी की कहानी

पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका अपनी भक्ति और पवित्रता के लिए प्रसिद्ध थीं। कहा जाता है कि उनका सतीत्व इतना शक्तिशाली था कि उनमें कच्चे घड़े में भी पानी एकत्र करने की दिव्य शक्ति थी।

लेकिन एक बार उसने एक राजा को नदी के किनारे अपनी पत्नी के साथ प्रेम करते हुए देखा और उसके मन में व्यभिचारी विचार आये। उन्होंने अपनी दिव्य शक्तियां खो दीं और उनके पति ऋषि जमदग्नि को इसके बारे में पता चला।
ऋषि के पांच पुत्र थे और क्रोध में आकर उन्होंने उन्हें रेणुका का सिर काटने का आदेश दिया। उनमें से चार ने इनकार कर दिया लेकिन पाँचवाँ पुत्र परशुराम तुरंत अपनी माँ का सिर काटने के लिए तैयार हो गया।

जब परशुराम ने अपनी माता को मारने के लिए कुल्हाड़ी उठाई तो वह भाग गई और एक नीची जाति की गरीब महिला के घर में शरण ली। परशुराम ने अपनी माँ का अनुसरण किया और सिर काटने का कार्य करते समय, उन्होंने गलती से निचली जाति की गरीब महिला का सिर भी काट दिया जो मातृहत्या को रोकने की कोशिश कर रही थी।

अपने पुत्र की भक्ति से प्रसन्न होकर ऋषि जमदग्नि ने परशुराम से वरदान स्वीकार करने को कहा। उसने तुरंत कहा कि वह अपनी माँ को जीवित चाहता है। ऋषि जमदग्नि तुरंत सहमत हो गए और उन्हें शव पर छिड़कने के लिए पानी का एक बर्तन दिया।

अपनी माँ को वापस लाने की जल्दी में, परशुराम ने गलती से निम्न जाति की महिला का सिर अपनी माँ के शरीर के साथ रख दिया। ऋषि जमदग्नि ने अपनी पत्नी रेणुका के इस नये रूप को स्वीकार कर लिया। तभी से रेणुका के मूल सिर को येल्लम्मा के रूप में पूजा जाने लगा। और इस प्रकार देवी को रेणुका येलम्मा कहा जाता है।

आज भी, ग्रामीण कर्नाटक में प्रतीकात्मक रूप से रेणुका के सिर को एक बर्तन या टोकरी से जोड़कर पूजा की जाती है, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश. पूरे प्रकरण का एक प्रतीकात्मक अर्थ भी है जिसकी व्याख्या अक्सर कहानी सुनने वाले पर छोड़ दी जाती है।

रेणुका की किंवदंतियाँ महाभारत, हरिवंश और भागवत पुराण में निहित हैं।

रेणुका/रेणु या येलम्मा या एकविरा या एलाई अम्मान या एलाई अम्मा (मराठी: श्री. रेणुका/येल्लुई, कन्नड़: ಶ್ರೀ ಎಲ್ಲಮ್ಮ ರೇಣುಕಾ, तेलुगु: శ్రీ రేణు క/ ఎల్లమ్మ, तमिल: ரேணு/रेणु) को हिंदू धर्म में देवी के रूप में पूजा जाता है . येल्लम्मा दक्षिण भारतीय राज्यों महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु की संरक्षक देवी हैं। उनके भक्त उन्हें “ब्रह्माण्ड की माता” या “जगदम्बा” के रूप में सम्मान देते हैं।

यल्लम्मा देवी का महत्व

यल्लम्मा देवी को शक्ति, साहस और समर्पण की देवी माना जाता है। वह महिलाओं के लिए एक आदर्श के रूप में भी पूजनीय हैं। उनके मंदिर में हर साल एक बड़ा मेला लगता है, जिसे यल्लम्मा जत्रा के नाम से जाना जाता है। यह मेला कर्नाटक और महाराष्ट्र के लाखों लोगों को आकर्षित करता है।

यल्लम्मा देवी की पूजा

यल्लम्मा देवी की पूजा सरल और बिना किसी ताम-झाम के की जाती है। भक्त उन्हें फूल, फल और नारियल चढ़ाते हैं। वे देवी से अपने दुखों को दूर करने और उनकी इच्छाओं को पूरा करने की प्रार्थना करते हैं।

यल्लम्मा देवी का मंदिर

यल्लम्मा देवी का मंदिर एक सुंदर और शांत स्थान है। मंदिर में एक गर्भगृह है, जहां देवी की मूर्ति स्थापित है। मंदिर परिसर में कई अन्य मंदिर और तीर्थस्थान भी हैं।  बेलगाम से लगभग 80 किमी दूर एक पहाड़ी की चोटी पर रेणुका देवी मंदिर स्थित है। इसे येल्लम्मा देवी मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, यह मंदिर जमदग्नि की पत्नी और परशुराम की मां रेणुका से संबंधित है, जिनकी कहानी प्राचीन पुराणों में एक उल्लिखित है।

यल्लम्मा देवी ( सौंदत्ती )
यल्लम्मा देवी ( सौंदत्ती )

इस मंदिर को चालुक्य और राष्ट्रकूटन शैलियों की वास्तुकला के अनुरूप बनाया गया है, जबकि इसकी नक्काशी पर जैन शैली का प्रभाव परिलक्षित होता है। इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1514 में रायबाग के बोमप्पा नाइक द्वारा प्रारंभ किया गया था। इस परिसर में भगवान गणेश, मल्लिकार्जुन, परशुराम, एकनाथ और सिद्धेश्वर को समर्पित मंदिर स्थापित हैं।

यल्लम्मा देवी कर्नाटक और महाराष्ट्र के लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण देवी हैं। उनका मंदिर एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है और हर साल लाखों भक्तों को आकर्षित करता है। यल्लम्मा देवी की कहानी शक्ति, साहस और समर्पण का संदेश देती है।

मुझे उम्मीद है कि आपको यह लेख पसंद आया होगा। यदि आपके पास कोई प्रश्न या सुझाव हैं, तो कृपया मुझे बताएं।

कृपया ध्यान दें: यल्लम्मा देवी की कहानी और महत्व के बारे में विभिन्न संस्करण मौजूद हैं। उपरोक्त लेख में दी गई जानकारी एक सामान्य सार है और सभी संस्करणों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है।

महाराष्ट्रातील देवीची साडेतीन शक्तिपीठे

5 (1)

The short URL of the present article is: https://moonfires.com/o5d1
Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *