रथसप्तमी

रथसप्तमी, माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इसे अचला सप्तमी, आरोग्य सप्तमी, अर्क सप्तमी और माघी सप्तमी जैसे नामों से भी जाना जाता है। यह दिन सूर्यनारायण की पूरी श्रद्धा से पूजा करने का और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति पर आयोजित होने वाला हल्दी-कुमकुम समारोह रथ सप्तमी के दिन संपन्न होते हैं।

रथसप्तमी

सनातन धर्म में सूर्य देव को पूजनीय माना गया है. हमारे धर्म में उगते हुए सूरज को प्रतिदिन अर्घ्य दिया जाता है। माना गया है कि ऐसा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। धर्म अनुसार, हर वर्ष में माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को भगवान सूर्य देव को समर्पित है। इस दिन को रथ सप्तमीया माघ सप्तमी के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन को भगवान सूर्य देव के जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य देव ने पूरे विश्व को रोशन करने शुरू किया था. इस दिन को सूर्य जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

रथसप्तमी
रथसप्तमी

 

तिथि के अनुसार रथ सप्तमी 16 फरवरी दिन शुक्रवार को मनाई जायगी। रथ सप्तमी के दिन अरुणोदय :- सुबह 06:35 मिनट पर। रथ सप्तमी के दिन सूर्योदय :- सुबह 06:59 मिनट पर।

रथ सप्तमी कथा

रथ सप्तमी वह दिन है जब सूर्य देव हीरे से जड़ित सोने के रथ में विराजमान हुए। सूर्यदेव को स्थिर रूप से खड़े रह कर साधना करते समय स्वयं की गति संभालना संभव नहीं हो रहा था। उनके पैर दुखने लगे और उसके कारण उनकी साधना ठीक से नही हो रही थी। तब उन्होंने परमेश्वर से उस विषय मे पूछा और बैठने के व्यवस्था करने के लिए कहा। मेरे बैठने के उपरांत मेरी गति कौन संभालेगा? “ऐसा उन्होंने परमेश्वर से पूछा”। तब परमेश्वर ने सूर्यदेव को बैठने के लिये सात घोड़े वाला हीरे से जड़ा हुआ सोने का एक रथ दिया। जिस दिन सूर्यदेव उस रथ पर विराजमान हुए, उस दिन को रथसप्तमी कहते हैं। इसका अर्थ है ‘सात घोड़ों का रथ’।

इस विधि के अनुसार करें पूजा

सबसे पहले इस दिन आप अरुणोदय में स्नान करें। इसके बाद सूर्योदय के समय भगवान सूर्य को अर्ध्य दें। फिर विधि विधान से सूर्य देव की पूजा करें। अर्घ्य देने के लिए आप सबसे पहले सूर्य देव के समक्ष खड़े होकर नमस्कार मुद्रा में हाथ जोड़ लीजिए। फिर एक छोटे कलश से भगवान सूर्य को धीरे-धीरे जल चढ़ाकर अर्घ्यदान दीजिए। इसके बाद गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं। साथ ही पूजा के समय सूर्य देव को लाल फूल अर्पित कीजिए।

 

ऐतिहासिक त्रेतायुगीन सूर्य मंदिर

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