केवट की कथा – क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग की शैया पर विश्राम कर रहे थे और लक्ष्मी जी उनके चरण दबा रही थीं। विष्णु जी का एक पैर शैया से बाहर निकल आया, और सागर की लहरें उनके पैर के अंगूठे से खेल रही थीं। इसी दृश्य को देखकर एक कछुवे के मन में विचार आया कि अगर वह भगवान विष्णु के पैर के अंगूठे को अपनी जीभ से स्पर्श कर ले, तो उसका मोक्ष हो जाएगा। वह धीरे-धीरे भगवान की ओर बढ़ने लगा।
जब शेषनाग जी ने उसे आते देखा, तो वे गुस्से में फुँफकारने लगे, जिससे डरकर कछुवा भाग गया। कुछ समय बाद, जब शेषनाग का ध्यान हटा, तो कछुवा फिर से कोशिश करने लगा, लेकिन इस बार लक्ष्मी जी की नजर उस पर पड़ गई। लक्ष्मी जी ने भी उसे भगा दिया।
बार-बार कोशिश करने के बावजूद, कछुवे को विष्णु के पैर छूने का मौका नहीं मिला। समय बीतता गया, सृष्टि की रचना हुई, सत्ययुग समाप्त हुआ और त्रेता युग का आगमन हुआ।
कछुवे का नया जन्म और प्रतीक्षा
उस कछुवे ने कई योनियों में जन्म लिया, और हर जन्म में भगवान की प्राप्ति के लिए तपस्या की। तप के बल से उसे दिव्य दृष्टि प्राप्त हो गई, जिससे उसे पता चला कि त्रेता युग में भगवान विष्णु राम के रूप में अवतरित होंगे, शेषनाग लक्ष्मण के रूप में, और लक्ष्मी जी सीता के रूप में।
वह समझ गया कि जब राम वनवास जाएंगे, तो उन्हें गंगा पार करनी होगी। इसी कारण, उसने इस बार केवट का जन्म लिया और गंगा किनारे भगवान राम की प्रतीक्षा करने लगा।
केवट की कथा – दृढ़ निश्चय
एक युग से भी अधिक समय तक तपस्या करने के बाद, केवट को भगवान की वास्तविक पहचान और मर्म का ज्ञान हो गया था। इसलिए जब राम गंगा पार करने आए, तो केवट ने उनसे कहा, “मैं आपका मर्म जानता हूँ।” संत तुलसीदास जी ने भी इस बात का उल्लेख अपनी चौपाई में किया है:
“कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना।”
केवट इस बार अपने अवसर को किसी भी हाल में खोना नहीं चाहता था। उसे याद था कि पहले शेषनाग उसे फुँफकार कर भगा देते थे, और वह डर जाता था। लेकिन इस बार उसने अपना भय त्याग दिया। उसे मालूम था कि लक्ष्मण उसे बाण मार सकते हैं, लेकिन इस अवसर को खोने का जोखिम वह उठाने को तैयार नहीं था।
तुलसीदास जी ने इस भावना को इस तरह व्यक्त किया है:
चरण पखारने की दृढ़ता
“पद कमल धोइ चढ़ाइ नाव
न नाथ उरराई चहौं।
मोहि राम राउरि आन
दसरथ सपथ सब साची कहौं॥
बरु तीर मारहु लखनु पै
जब लगि न पाय पखारिहौं।
तब लगि न तुलसीदास
नाथ कृपाल पारु उतारिहौं॥”
(हे नाथ! मैं आपके चरणकमल धोकर आपको नाव पर चढ़ा लूँगा; मैं आपसे कोई उतराई नहीं चाहता। राम! मुझे आपकी दुहाई और दशरथ जी की सौगंध है, मैं सच कह रहा हूँ। भले ही लक्ष्मण मुझे बाण मार दें, पर जब तक मैं आपके चरण धो नहीं लेता, तब तक आपको पार नहीं उतारूँगा।)
केवट का प्रेम और भगवान की करुणा
तुलसीदास जी आगे लिखते हैं:
“सुनि केवट के बैन प्रेम लपेटे अटपटे।
बिहसे करुनाऐन चितइ जानकी लखन तन॥”
जब केवट के प्रेम से लिपटे शब्दों को राम, सीता और लक्ष्मण ने सुना, तो भगवान राम ने करुणा से हँसते हुए सीता और लक्ष्मण की ओर देखा। राम मानो उनसे पूछ रहे थे कि अब क्या किया जाए? पहले तो यह केवल मेरे अंगूठे को स्पर्श करना चाहता था और तुम इसे भगा रहे थे, लेकिन अब यह मेरे दोनों पैर माँग रहा है।
केवट की चतुराई और मोक्ष प्राप्ति
केवट अत्यंत चतुर था। उसने न केवल स्वयं मोक्ष प्राप्त किया, बल्कि अपने परिवार और पितरों को भी तार दिया। तुलसीदास जी लिखते हैं:
“पद पखारि जलु पान
करि आपु सहित परिवार।
पितर पारु करि प्रभुहि
पुनि मुदित गयउ लेइ पार॥”
(केवट ने राम के चरण धोकर पूरे परिवार सहित उस चरणामृत का पान किया और उसी जल से अपने पितरों का तर्पण किया, जिससे उसके पितर भी मोक्ष को प्राप्त हो गए। फिर आनन्दपूर्वक राम को गंगा के पार ले गया।)
एक अद्वितीय दृश्य
जब केवट भगवान राम के चरण धो रहे थे, तो यह दृश्य अत्यंत मनोहारी था। केवट पहले एक पैर धोता और फिर उसे कठौती से बाहर निकाल देता। जब वह दूसरा पैर धोने लगता, तो पहला पैर जमीन पर रखे जाने के कारण धूल से भर जाता। ऐसे में केवट ने भगवान से कहा, “प्रभु, एक पैर कठौती में रखिए और दूसरा मेरे हाथ पर।”
भगवान राम ने ऐसा ही किया, और जब वे केवल एक पैर कठौती में और दूसरा केवट के हाथ में रखे खड़े थे, तो भगवान हँसते हुए बोले, “केवट, मैं गिर जाऊँगा।”
केवट ने उत्तर दिया, “भगवन्, चिंता मत कीजिए। आप अपने दोनों हाथ मेरे सिर पर रखकर खड़े हो जाइए, फिर आप नहीं गिरेंगे।”
यह दृश्य एक छोटे बच्चे के समान था, जब बच्चा अपनी माँ के सिर पर हाथ रखकर खड़ा होता है, ठीक वैसे ही भगवान राम उस समय केवट के सिर पर अपने हाथ रखकर खड़े थे।
भगवान का अभिमान टूटना
भगवान राम ने केवट से कहा, “भाई केवट! आज मेरा अभिमान टूट गया।”
केवट आश्चर्यचकित होकर बोला, “प्रभु! ऐसा क्यों कह रहे हैं?”
राम ने उत्तर दिया, “अब तक मैं समझता था कि मैं अपने भक्तों को गिरने से बचाता हूँ, लेकिन आज तुमने मुझे गिरने से बचा लिया।”
इस प्रकार केवट ने भगवान की कृपा से मोक्ष प्राप्त किया और अपने समर्पण एवं प्रेम से एक अद्वितीय स्थान प्राप्त किया।