महावीर स्वामी
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी का निर्वाणोत्सव दिवस प्रतिवर्ष दीपावली के दिन मनाया जाता है। हर साल जहां कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन हिन्दू धर्मावलंबी दीपावली पर्व मनाते हैं, वहीं जैन धर्म में भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस मनाया जाता है। कैलेंडर के मत-मतांतर के चलते अमावस्या तिथि में बदलाव के कारण यह अगले दिन भी मनाना संभव है।
जैन धर्म के अनुसार कार्तिक कृष्ण अमावस्या के दिन ही भगवान महावीर स्वामी को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। भगवान महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर यानी अंतिम तीर्थंकर हैं। अत: प्रतिवर्ष जैन धर्म में दीपावली के दिन दीपमालिका सजाकर भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है।
भगवान महावीर का जन्म 27 मार्च 598 ई.पू. अर्थात् 2610 वर्ष पहले हुआ था और 72 वर्ष की अवस्था में पावापुरी (बिहार) में कार्तिक कृष्ण अमावस्या के ही दिन स्वाति नक्षत्र में कैवल्य ज्ञान प्राप्त करके निर्वाण प्राप्त किया था।
जन्म
भगवान महावीर स्वामी एक राज परिवार में पैदा होते हुए भी उन्होंने ऐश्वर्य और धन-संपदा का उपभोग नहीं किया। उनके घर-परिवार में ऐश्वर्य व संपदा की कोई कमी नहीं थी। युवावस्था में कदम रखते ही उन्होंने संसार की माया-मोह और राज्य को छोड़कर अनंत यातनाओं को सहन किया और समस्त सुख-सुविधाओं का मोह छोड़कर वे नंगे पैर पदयात्रा करते रहे।
भगवान महावीर का दिव्य-संदेश ‘जियो और जीने दो’ को जन-जन तक पहुंचाने के लिए प्रतिवर्ष कार्तिक अमावस्या को जिनालयों, भवनों, कार्यालयों व बाग-बगीचों को दीपों से सजाया जाता है और दीये जलाए जाते हैं। भगवान महावीर से कृपा-प्रसाद प्राप्ति हेतु लड्डुओं का नैवेद्य अर्पित किया जाता है। इसे ‘निर्वाण लाडू’ कहा जाता है।
कार्य
भगवान महावीर स्वामी का जीवन एक खुली किताब की तरह है। उनका जीवन ही सत्य, अहिंसा और मानवता का संदेश है। उनका संपूर्ण जीवन तप और ध्यान की पराकाष्ठा है, इसलिए वह स्वतः प्रेरणादायी है। भगवान के उपदेश जीवनस्पर्शी हैं जिनमें जीवन की समस्याओं का समाधान निहित है।
भगवान महावीर चिन्मय दीपक हैं। दीपक अंधकार का हरण करता है किंतु अज्ञानरूपी अंधकार को हरने के लिए चिन्मय दीपक की उपादेयता निर्विवाद है। उनके प्रवचन और उपदेश आलोक पुंज हैं। महावीर ने अपने जीवनकाल में अहिंसा के उपदेश प्रसारित किए। उनके उपदेश इतने आसान हैं कि उनको जानने-समझने के लिए किसी विशेष प्रयास की आवश्यकता ही नहीं।
एक बार जब महावीर स्वामी पावा नगरी के मनोहर उद्यान में गए हुए थे, जब चतुर्थकाल पूरा होने में 3 वर्ष और 8 माह बाकी थे। तब कार्तिक अमावस्या के दिन सुबह स्वाति नक्षत्र के दौरान महावीर स्वामी अपने सांसारिक जीवन से मुक्त होकर मोक्षधाम को प्राप्त हो गए। उस समय इन्द्रादि देवों ने आकर भगवान महावीर के शरीर की पूजा की और पूरी पावा नगरी को दीपकों से सजाकर प्रकाशयुक्त कर दिया।
उसी समय से आज तक यही परंपरा जैन धर्म में चली आ रही है। जैन धर्म में प्रतिवर्ष दीपमालिका सजाकर भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है। उसी दिन शाम को श्री गौतम स्वामी को कैवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई थी, तब देवताओं ने प्रकट होकर गंधकुटी की रचना की और गौतम स्वामी एवं कैवल्यज्ञान की पूजा करके दीपोत्सव का महत्व बढ़ाया।
इसी उपलक्ष्य में सभी जैन बंधु सायंकाल दीपक जलाकर पुन: नए बही-खातों का मुहूर्त करते हुए भगवान गणेश और माता लक्ष्मी जी का पूजन करने लगे। ऐसा माना जाता है कि 12 गणों के अधिपति गौतम गणधर ही भगवान श्री गणेश हैं, जो सभी विघ्नों के नाशक हैं। उनके द्वारा कैवल्यज्ञान की विभूति की पूजा ही महालक्ष्मी की पूजा है।
आज की इस भागदौड़भरी जिंदगी में हमें भगवान महावीर के उपदेशों पर चलते हुए सत्य, अहिंसा के मार्ग पर चलकर तथा लोभ, लालच, भ्रष्टाचार आदि बुरे अपवादों को मिटाने की कोशिश करनी चाहिए। सत्य व अहिंसा का मार्ग अपने जीवन में अपनाते हुए दीपावली पर्व पर जीव-जंतुओं, प्राणियों तथा पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए।
मोक्ष
जैन धर्म में धन, संपत्ति, यश तथा वैभव लक्ष्मी के बजाय वैराग्य लक्ष्मी प्राप्ति पर बल दिया गया है। अत: हमें भी मोक्ष प्राप्ति की अधिक ध्यान देना चाहिए। इस तरह हम सभी जीवों की रक्षा करके हम सही मायनों में भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाएंगे तथा यह संकल्प जीवनपर्यंत निभाना चाहिए।
आरती
जय महावीर प्रभो, स्वामी जय महावीर प्रभो।
कुंडलपुर अवतारी, त्रिशलानंद विभो॥ ॥ ॐ जय…..॥
सिद्धारथ घर जन्मे, वैभव था भारी, स्वामी वैभव था भारी।
बाल ब्रह्मचारी व्रत पाल्यौ तपधारी ॥ ॐ जय…..॥
आतम ज्ञान विरागी, सम दृष्टि धारी।
माया मोह विनाशक, ज्ञान ज्योति जारी ॥ ॐ जय…..॥
जग में पाठ अहिंसा, आपहि विस्तार्यो।
हिंसा पाप मिटाकर, सुधर्म परिचार्यो ॥ ॐ जय…..॥
इह विधि चांदनपुर में अतिशय दरशायौ।
ग्वाल मनोरथ पूर्यो दूध गाय पायौ ॥ ॐ जय…..॥
प्राणदान मन्त्री को तुमने प्रभु दीना।
मन्दिर तीन शिखर का, निर्मित है कीना ॥ ॐ जय…..॥
जयपुर नृप भी तेरे, अतिशय के सेवी।
एक ग्राम तिन दीनों, सेवा हित यह भी ॥ ॐ जय…..॥
जो कोई तेरे दर पर, इच्छा कर आवै।
होय मनोरथ पूरण, संकट मिट जावै ॥ ॐ जय…..॥
निशि दिन प्रभु मन्दिर में, जगमग ज्योति जरै।
हरि प्रसाद चरणों में, आनन्द मोद भरै ॥ ॐ जय…..॥
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